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Ask QuestionPosted by Account Deleted 6 months, 1 week ago
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Posted by Yuvi Back 7 months, 2 weeks ago
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Posted by Kartik 01 7 months, 4 weeks ago
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Posted by Ayush Kushwaha 10 months ago
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Posted by Tanuj Joshi 11 months ago
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Posted by The Boss 11 months, 1 week ago
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Posted by Surendra Rawat 1 year, 2 months ago
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Posted by Sythe Pro 1 year, 5 months ago
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Posted by Kishan Rana 2 years, 1 month ago
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Preeti Dabral 2 years, 1 month ago
तुलसीदास जी का जन्म 1554 ईश्वी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। इस वर्ष यह तिथि रविवार 3 अगस्त को है। इनके विषय में कहा जाता है कि कलियुग में इन्हें भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी के दर्शन प्राप्त हुए थे। तुलसीदास जी के विषय में यह भी मान्यता है कि यह पूर्वजन्म में रामायण के लेखक महाकवि बाल्मिकी थे।
Posted by Asmit Rawat 2 years, 1 month ago
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Bhuvnesh Topal 1 year, 1 month ago
Posted by Ritesh Bisht 2 years, 1 month ago
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Posted by Aakrati Kashyap 3 years ago
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Posted by Loveneet Kumar 3 years, 6 months ago
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Posted by Boss Xhl 3 years, 6 months ago
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Vishal Mamgain 3 years ago
Posted by Boss Xhl 3 years, 6 months ago
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Nikhil Khanna 2 years, 10 months ago
Posted by Jyoti >_< 3 years, 8 months ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
Posted by Jyoti >_< 3 years, 8 months ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
यदि हमारे आसपास हरिहर काका जैसी हालत में कोई हो तो हम उसकी पूरी तरह मदद करने की कोशिश करेंगे। उनसे मिलकर उनके दुख का कारण पता करेंगे, उन्हें अहसास दिलाएँगे कि वे अकेले नहीं हैं। सबसे पहले तो यह विश्वास कराएँगे कि सभी व्यक्ति लालची नहीं होते हैं। इस तरह मौन रह कर दूसरों को मौका न दें बल्कि उल्लास से शेष जीवन बिताएँ। रिश्तेदारों से मिलकर उनके संबंध सुधारने का प्रयत्न करेंगे।
Posted by Jyoti >_< 3 years, 8 months ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
आज समाज में मानवीय मूल्य तथा पारिवारिक मूल्य धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं। ज़्यादातर व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए रिश्ते निभाते हैं, अपनी आवश्यकताओं के हिसाब से मिलते हैं। अमीर रिश्तेदारों का सम्मान करते हैं, उनसे मिलने को आतुर रहते हैं जबकि गरीब रिश्तेदारों से कतराते हैं। केवल स्वार्थ सिद्धि की अहमियत रह गई है। आए दिन हम अखबारों में समाचार पढ़ते हैं कि ज़मीन जाय़दाद, पैसे जेवर के लिए लोग घिनौने से घिनौना कार्य कर जाते हैं (हत्या अपहरण आदि)। इसी प्रकार इस कहानी में भी पुलिस न पहुँचती तो परिवार वाले मंहत जी (काका की) हत्या ही कर देते। उन्हें यह अफसोस रहा कि वे काका को मार नहीं पाए।
Posted by Jyoti >_< 3 years, 8 months ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
हरिहर काका को जब अपने भाईयों और महंत की असलियत पता चली और उन्हें समझ में आ गया कि सब लोग उनकी ज़मीन जायदाद के पीछे पड़े हैं हैं तो उन्हें वे सभी लोग याद आ गए जिन्होंने परिवार वालों के मोह माया में आकर अपनी ज़मीन उनके नाम कर दी और मृत्यु तक तिल-तिल करके मरते रहे, दाने-दाने को मोहताज़ हो गए। इसलिए उन्होंने सोचा कि इस तरह रहने से तो एक बार मरना अच्छा है। जीते जी ज़मीन किसी को भी नहीं देंगे। ये लोग मुझे एक बार में ही मार दे। अत: लेखक ने कहा कि अज्ञान की स्थिति में मनुष्य मृत्यु से डरता है परन्तु ज्ञान होने पर मृत्यु वरण को तैयार रहता है।
Posted by Jyoti >_< 3 years, 8 months ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
हरिहर काका के मामले में गाँव के लोग दो पक्षों में बँट गए थे कुछ लोग मंहत की तरफ़ थे जो चाहते थे कि काका अपनी ज़मीन धर्म के नाम पर ठाकुरबारी को दे दें ताकि उन्हें सुख आराम मिले, मृत्यु के बाद मोक्ष, यश मिले। यह सोच उनके धार्मिक प्रवृत्ति और ठाकुरबारी से मिलनेवाले स्वादिष्ट प्रसाद के कारण थी लेकिन दूसरे पक्ष के लोग जो कि प्रगतिशील विचारों वाले थे उनका मानना था कि काका को वह जमीन ज़मीन परिवार वालो को दे देनी चाहिए। उनका कहना था इससे उनके परिवार का पेट भरेगा। मंदिर को ज़मीन देना अन्याय होगा। इस तरह दोनों पक्ष अपने-अपने हिसाब से सोच रहे थे परन्तु हरिहर काका के बारे में कोई नहीं सोच रहा था। इन बातों का एक और भी कारण यह था कि काका विधुर थे और उनके कोई संतान भी नहीं थी।
Posted by Jyoti >_< 3 years, 8 months ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
हरिहर काका के मामले में गाँव के लोग दो पक्षों में बँट गए थे कुछ लोग मंहत की तरफ़ थे जो चाहते थे कि काका अपनी ज़मीन धर्म के नाम पर ठाकुरबारी को दे दें ताकि उन्हें सुख आराम मिले, मृत्यु के बाद मोक्ष, यश मिले। यह सोच उनके धार्मिक प्रवृत्ति और ठाकुरबारी से मिलनेवाले स्वादिष्ट प्रसाद के कारण थी लेकिन दूसरे पक्ष के लोग जो कि प्रगतिशील विचारों वाले थे उनका मानना था कि काका को वह जमीन ज़मीन परिवार वालो को दे देनी चाहिए। उनका कहना था इससे उनके परिवार का पेट भरेगा। मंदिर को ज़मीन देना अन्याय होगा। इस तरह दोनों पक्ष अपने-अपने हिसाब से सोच रहे थे परन्तु हरिहर काका के बारे में कोई नहीं सोच रहा था। इन बातों का एक और भी कारण यह था कि काका विधुर थे और उनके कोई संतान भी नहीं थी।
Posted by Jyoti >_< 3 years, 8 months ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
हरिहर काका अनपढ़ थे फिर भी उन्हें दुनियादारी की बेहद समझ थी। उनके भाई लोग उनसे ज़बरदस्ती ज़मीन अपने नाम कराने के लिए डराते थे तो उन्हें गाँव में दिखावा करके ज़मीन हथियाने वालो की याद आती है।
Posted by Jyoti >_< 3 years, 8 months ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
ठाकुरबारी के प्रति गाँववालों के मन में जो अपार श्रद्धा के भाव थे उनसे गाँववालों की ठाकुरजी के प्रति अगाध विश्वास, भक्ति-भावना ईश्वर में आस्तिकता, और एक प्रकार की अंधश्रद्धा जैसी मनोवृतियों का पता चलता है।
Posted by Jyoti >_< 4 years ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
Posted by Jyoti >_< 3 years, 8 months ago
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Sia ? 3 years, 8 months ago
कथावाचक और हरिहर काका के बीच दोस्ती का संबंध है, हालांकि दोनों के बीच उम्र का फासला है। जब कथावाचक एक छोटा बच्चा था तो उसे हरिहर काका का ढ़ेर सारा प्यार मिला। जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तो उसके पहले मित्र भी हरिहर काका ही बने।
Posted by Raja Babu 4 years, 1 month ago
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Posted by Manish Kumar 4 years, 4 months ago
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Posted by Priyanshu Kumar Kumar 4 years, 6 months ago
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Posted by Adesh Kumar 4 years, 7 months ago
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Posted by Anas Siddiqui 4 years, 11 months ago
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