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Ask QuestionPosted by Bhumi Gothwal 1 year, 4 months ago
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Posted by Sumiy Jangid 1 year, 4 months ago
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Posted by Diksha Laniya🐥 1 year, 5 months ago
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Posted by Sukhman Singh 1 year, 6 months ago
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Posted by Badal Santa 1 year, 7 months ago
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Sai Akshara 1 year, 4 months ago
Posted by Aditya Jaiswal 1 year, 7 months ago
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Sneha 💜💜💜Ms. Jeon Jungkook 💜💜 1 year, 6 months ago
Posted by Aditya Jaiswal 1 year, 7 months ago
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Posted by Sarthak More 1 year, 11 months ago
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Posted by Nikhil Dhaka 1 year, 11 months ago
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Aditya Jaiswal 1 year, 7 months ago
Posted by 아르피타 방탄소년단 아미 ♾️ 2 years ago
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Sneha 💜💜💜Ms. Jeon Jungkook 💜💜 1 year, 7 months ago
Posted by Ambika Chowdhury 2 years ago
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Posted by Ambika Chowdhury 2 years ago
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Posted by Mahi Taya 2 years ago
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Posted by Nancy Yadav 2 years, 5 months ago
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Posted by Aastha Bhar 2 years, 5 months ago
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Posted by Aiswarya Gigi 2 years, 6 months ago
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Himani Sinha 2 years, 5 months ago
Posted by Mohit . 2 years, 8 months ago
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Sia ? 2 years, 8 months ago
S S 2 years, 6 months ago
Posted by Diksha Papndey 2 years, 8 months ago
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Posted by Jayashree Athavale 2 years, 10 months ago
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Preeti Dabral 2 years, 10 months ago
त्रिपुष्कर वाद्ययंत्र, जिसे पंडित शारंग देव ने अव्यवहारिक बताते हुए अपने शास्त्र संगीत रत्नाकर में उसका वर्णन करने से मना कर दिया था, तबला कलाकार व भातखंडे के शिक्षक सारंग पांडेय ने न सिर्फ उसका पुनर्निर्माण किया, बल्कि केंद्र सरकार से मान्यता भी दिला दी। भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में वर्णित अनवद्ध वाद्य ‘त्रिपुष्कर’ को भारत सरकार ने सबसे पुराने वाद्य यंत्र के रूप में दर्ज किया है। श्री पांडेय ने बताया कि 28 मार्च को आवेदन किया था। शोध कराने के बाद केंद्र सरकार ने उसे सबसे प्राचीन वाद्ययंत्र की मान्यता दी।
Posted by Nishu Yadav 2 years, 11 months ago
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Sia ? 2 years, 11 months ago
तानपुरा एक वाद्य यंत्र है। उत्तर-भारतीय संगीत में इसने महत्त्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर लिया है। कारण यह है कि इसका स्वर बहुत ही मधुर तथा अनुकूल वातावरण की सृष्टि में सहायक होता है।
तानपुरे की झन्कार सुनते ही गायक की हृदय-तन्त्री भी झंकृत हो उठती है, अत: इसका उपयोग गायन अथवा वादन के साथ स्वर देने में होता है।
अपरोक्ष रूप में तानपुरे से सातो स्वरों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें हम सहायक नाद कहते हैं। तानपुरा अथवा तानपुरे में 4 तार होते हैं।
Posted by Arshita Yadav 2 years, 11 months ago
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Posted by Ajay Khanna 2 years, 11 months ago
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Himani Sinha 2 years, 5 months ago
Vishal Prajapat 2 years, 8 months ago
Sia ? 2 years, 11 months ago
Posted by Akash Mourya 3 years ago
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Mamta ... 3 years ago
Posted by Priyanshu Puri 3 years, 1 month ago
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Rashi Jamwal 1 year, 7 months ago
Posted by Vanshit Jain 3 years ago
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Sia ? 3 years ago
Bhairavi is a Hindustani Classical heptatonic raga of Bhairavi thaat. In Western musical terms, raga Bhairavi employs the notes of the Phrygian mode, one of the traditional European church modes.
Posted by Daksh Gupta 3 years, 2 months ago
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Preeti Dabral 1 year, 4 months ago
सर्वत्र ख्याल का प्रचार होने से सदारंग-अदारंग का नाम सर्वविदित है, क्योंकि उन लोगों ने अनेक छोटे-बड़े ख्यालों की रचना की। ख्याल के साथ वे लोग भी अमर हो गये सदारंग-अदारंग उनका उपनाम था, उनका असली नाम क्रमशः नियामत खाँ और फिरोज खाँ था। अदारंग (फिरोज खॉ) सदारंग (नियामत खाँ) के पुत्र थे। गायक तानसेन की पुत्री की दसवीं पीढ़ी सदारंग की थी। उनका पूरा उपनाम सदारंगीले था। उनके गीतों में अधिकतर सदारंगीले मोहमदसा लिखा हुआ पाया जाता है। वे मोहम्मदशाह के दरबार में थे। उनको प्रसन्न करने के लिये अपने गीतों में उनका नाम डाल दिया करते थे। एक बार बादशाह के दिमाग में यह बात जम गई कि सारंगी के साथ नियामत खाँ की बीन भी बजे। उनकी यह इच्छा नियामत खाँ को सूचित कर दी गई। इसे सुनकर वे बड़े दुःखी हुये और उनके वजीर से साफ-साफ कह दिया कि सारंगी की संगति करना मेरी बेइज्जती है। मैं खानदानी बीनकर हूँ, कोई अताई नहीं हूं। बादशाह की बात किसी प्रकार टाली नहीं जा सकती थी। एक ओर नियामत खाँ अपनी हठ पर अड़े रहे और दूसरी ओर बादशाह, जो उसे दरबार में रक्खे हुए थे। वे अपनी आज्ञा की अवहेलना किसी भी प्रकार सहन नहीं कर सकते थे। अतः उसने सदारंग को अपने दरबार से निकाल दिया। कुछ समय तक सदारंग अज्ञात रहे। उनका मन सदा ख्याल के प्रचार में लगा रहता। अन्त में सदारंग ने ख्याल को प्रचार में लाने के लिये एक नई तरकीब खोज निकाली। उन्होंने सोचा कि अगर गाने के शब्दों में बादशाह का नाम भी डाल दिया जाय तो ऐसे गीतों को सभी लोग पसन्द करेंगे और गीत के साथ ख्याल शैली भी प्रचलित हो जायेगी। उसने ऐसा ही किया और उसे बड़ी सफलता मिली। उसने अपने सभी रचित गीतों में सदा रंगीले मोम दशा शब्द डाल दिया। बादशाह भी ऐसे गीतों को बड़ी चाव से सुनता था। उसके मन में बड़ी उत्कण्ठा हुई कि सदा रंगीले कौन हैं ? पता लगाने पर वह नियामत खाँ निकले। बादशाह ने उनके पुराने अपराध को क्षमा कर दिया और पुनः आदरपूर्वक दरबार में रख लिया। दरबार के अन्य ध्रुपद गायक ख्याल को जनाना संगीत कहने लगे और उससे जलने लगे। कहा जाता है कि सदा रंगीले स्वयं तो ध्रुपद गाया करते थे, किन्तु अपने शिष्यों को ख्याल ही सिखाते। उसके गीतों में श्रृंगारिकता और बादशाह की प्रशंसा पाई जाती है। उसके रचित गीत ख्याल होने के कारण पहले निम्न कोटि के समझे जाते थे, किन्तु जैसे-जैसे प्रचलित होते गये उनका महत्व बढ़ता गया।
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