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Ask QuestionPosted by Aanchal Singh Chauhan 5 years, 1 month ago
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Arpita .9 5 years, 1 month ago
Posted by Ambika Ambika 5 years, 1 month ago
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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago
स्थायी भाव से रस का जन्म होता हे | जो भावना स्थिर और सार्वभौम होती है उसे स्थायी भाव कहते हैं। विभाव अनुभव और व्यभिचार स्थायी भावों का अधीन होते हैं। इसीलिए स्थायी भाव मुख्य बनता है। स्थायी भाव भावनाओं से बनता है और व्यभिचार एंसिलरी होती हे | जब स्थायी व्यभिचारी विभाव और अनुभव से संयोजन होता है तब रस बनता हे | नाट्यशास्त्र में कहते हैं कि " एक अच्छा स्वाद का उत्पादन किया जाता है जब विभिन्न मसाले एक साथ मिलाते हे, वैसे ही स्थायी भाव से रस का स्वाद बढ़ता हे |"
यह गौर का बात हे की भाव भावुकता के उत्पादन में एक मुख भाग करता है। रस का उत्पादन भाव के बिना नहीं हो सकता | इस प्रकार से स्थायी भाव, रस के नाम से प्रसिद्ध हे | स्थायी भाव ८ होता हे
- रति (प्रेम)
- उत्साह (ऊर्जा)
- शोक
- हास
- विसम्या
- भय
- जुगुप्सा
- क्रोध
कुछ लोग ' सम' भी इसके साथ जोड़ते हे |
2)
विभाव
साहित्य में, वह कारण जो आश्रय में भाव जाग्रत या उद्दीप्त करता हो। स्थायी भावों के उद्बोधक कारण को विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं-
-
आलंबन विभाव
-
उद्दीपन विभाव
आलंबन विभाव
जिसका आलंबन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं, आलंबन विभाव कहलाता है। आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं:-
-
आश्रयालंबन
-
विषयालंबन
Bhawesh Naik 5 years, 1 month ago
Ambika Ambika 5 years, 1 month ago
Posted by Priya Rani 4 years, 8 months ago
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Sia ? 4 years, 8 months ago
Posted by Hafiza Suhani 5 years, 1 month ago
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Posted by Rakesh Gurjar 5 years, 1 month ago
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Posted by Rakesh Gurjar 5 years, 1 month ago
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Posted by Rakesh Gurjar 5 years, 1 month ago
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Posted by Nupur Gupta 5 years, 1 month ago
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Maahi Chawla 5 years, 1 month ago
Posted by Aman Kumar 5 years, 1 month ago
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Posted by Fatima Zahra Siddiqui 5 years, 1 month ago
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Thakur Chauhan 5 years, 1 month ago
Posted by Riya Raj 5 years, 1 month ago
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Mitali Awasthi 5 years, 1 month ago
Posted by Om Maheshwari 5 years, 1 month ago
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Posted by @/<$#!T Just Own 5 years, 1 month ago
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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago
सेवा में ,
मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी ,
नगर निगम ,
शिमला।
विषय : अपने मोहल्ले की सफाई करवाने हेतु नगर निगम अधिकारी को पत्र
श्रीमान जी ,
मैं इस पत्र के माध्यम से आपका ध्यान मोहल्ले की साफ सफाई की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ । हमारे इलाके का कचरा कंटेनर कई दिनों तक सफाई न करने के कारण बह निकला है। खराब गंध से निकलने वाली सड़ी हुई सामग्री इस प्रकार आस-पास के लोगों को अपनी नाक के आसपास दुपट्टा पहनने के लिए मजबूर करती है। अगर यही स्थिति कुछ और दिनों तक बनी रही तो बीमारी फैलने की संभावना रहेगी। हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है।
इसलिए, हमारा विनम्रतापूर्वक निवेदन है कि आज ही कृपया इसे साफ किया जाए ताकि हम जल्द ही एक सामान्य जीवन जी सकें।
धन्यवाद सहित ,
भवदीय ,
कमल
शिमला।
Posted by @/<$#!T Just Own 5 years, 1 month ago
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Yogita Ingle 5 years, 1 month ago
भूमिका : शब्दकोश में फैशन का अर्थ होता है ढंग या शैली लेकिन लोकव्यवहार में फैशन का परिधान शैली अथार्त वस्त्र पहनने की कला को कहते हैं। मनुष्य अपने आप को सुंदर दिखाने के लिए फैशन का प्रयोग करता है। कोई भी व्यक्ति गोरा हो या काला, मोटा हो या पतला, नवयुवक हो या प्रौढ़ सभी का कपड़े पहनने का अपना-अपना ढंग होता है।
मनुष्य केवल अपनी आयु, रूप-रंग और शरीर की बनावट को देखकर ही फैशन करता है। यहाँ तक की फैशन के विषय में कोई विशेष विवाद नहीं है। कोई भी अध्यापक हो या विद्यार्थी, लड़का हो या लडकी, पुरुष हो या स्त्री सभी को फैशन करने का अधिकार होता है।
फैशन पर विवाद : जब हम फैशन का गूढ़ अर्थ बनाव सिंगार लेते हैं तो फैशन के विषय में विवाद उठता है। इस गूढ़ अर्थ से दूल्हा और दुल्हन का संबंध हो सकता है लेकिन छात्र और छात्राओं का इससे कोई संबंध नहीं होता है।
छात्र और छात्राएं अभी विद्यार्थी हैं और विद्यार्थी का अर्थ होता है विद्या की इच्छा करने वाला। अगर विद्या की इच्छा करने वाले विद्यार्थी फैशन को चाहने लगेंगे तो वे अपने लक्ष्य से बहुत दूर भटक जायेंगे। अगर विद्यार्थी विद्या की जगह पर फैशन को चाहेगा तो विद्या उससे रूठ जाएगी।
प्राचीनकाल में विद्यार्थियों में फैशन की भावना : प्राचीनकाल में विद्यार्थी फैशन को इतना पसंद नहीं करते थे जितने आज के विद्यार्थी करते हैं। प्राचीनकाल में विद्यार्थी सादा जीवन उच्च विचार में विश्वास रखते थे उनमे फैशन की अपेक्षा विद्या को चाहने की बहुत तीव्र इच्छा होती थी।
आज के विद्यार्थियों में फैशनेबल दिखने की इच्छा तीव्र होती है। आजकल विद्यार्थी जिस तरह के कपड़े दूसरों को पहने हुए देखते हैं वैसे ही कपड़ों की मांग वे अपने माता -पिता से करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि आस-पास के लोगों में खुद को धनी दिखा सकें लेकिन वास्तव में वे धनी नहीं होते हैं।
धनी के साथ-साथ आज का विद्यार्थी खुद को दूसरों से सुंदर दिखाना चाहता है जो वो होता नहीं है। इस तरह वे फैशन में इतना समय व्यर्थ में गंवा देते हैं लेकिन बहुत से महत्वपूर्ण कामों के लिए उसके पास समय ही नहीं होता है। ऐसी अवस्था में कौन उन्हें यह बात समझाएगा कि वे धन के अपव्यय के साथ-साथ समय की भी बरबादी करते हैं।
सौन्दर्य के लिए धन की आवश्यकता : जब विद्यार्थी सुंदर दिखने की भावना को प्रबल कर लेते हैं तो उन में धन विलासिता भी बढ़ जाती है। फैशन के जीवन को जीने के लिए धन की आवश्यकता होती है। जब विद्यार्थी को फैशन का जीवन जीने के लिए धन आसानी से नहीं मिलता है तो वह झूठ का सहारा लेकर धन को प्राप्त करने की कोशिश करता है।
वह धन को पाने के लिए चोरी तक करने लगता है। ऐसा करने के बाद जुआ जैसे बुरे काम भी उनसे दूर नहीं रह पाते हैं। इस तरह से विद्यार्थी की मौलिकता खत्म हो जाती है और वह आधुनिक वातावरण में जीने लगता है। ऐसा करने से घर के लोगों से उसका संबंध टूट जाता है और सिनेमा के अभिनेता उसके आदर्श बन जाते हैं।
वे विद्यालय की जगह पर फिल्मों में अधिक रूचि लेने लगते हैं और अपने मार्ग से भटक जाते हैं। जो विद्यार्थी फैशन के पीछे भागते हैं वे अपने जीवन में कभी भी आगे नहीं बढ़ पाते हैं। आगे चलकर उन्हें पछताना ही पड़ता है।
सिनेमा का कुप्रभाव : आज के समय में हमारे जीवन में सिनेमा एक महत्वपूर्ण अंग बन चुका है। ज्यादातर छात्र-छात्राएं फिल्मों से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। अमीर परिवार तो फैशनेबल कपड़े पहन सकते हैं और अपने बच्चों को भी फैशनेबल कपड़े पहना सकते हैं लेकिन गरीब लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं। विद्यार्थियों में देखा-देखी फैशन की होड़ बढती ही जा रही है। टीवी की संस्कृति ने हमारे देश के लोगों के लिए समस्याएँ उत्पन्न कर दी हैं। यह फैशनपरस्ती फिल्मों की ही देन है।
फैशन के दुष्परिणाम : आज के विद्यार्थियों में फैशन की प्रवृत्ति के बढने से केवल माता-पिता ही नहीं बल्कि पूरे समाज मे घातक सिद्ध हो रही है। गरीब परिवार के लोग अपने बच्चों की मांगों की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। इसकी वजह से उनके घर के बच्चे घर में असहज वातावरण उत्पन्न कर देते हैं।
जो विद्यार्थी फैशन के पीछे भागते हैं वो सिनेमा घरों में जाकर अशोभनीय व्यवहार करते हैं, गली मोहल्लों में हल्ला मचाते हैं और हिंसक गतिविधियों में भाग लेते हैं। जो विद्यार्थी फैशनपरस्ती होते हैं वे जीवन के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं | जो विद्यार्थी फैशनपरस्ती के पीछे भागते हैं वो अपनी शिक्षा की तरफ ध्यान नहीं दे पाते हैं। ऐसे विद्यार्थी अपने माता-पिता के सपनों को तोड़ देते हैं।
उपसंहार : हम यह कह सकते हैं कि फैशन विद्यार्थियों के लिए अच्छा नहीं होता है। विद्यार्थियों का आदर्श हमेशा सादा जीवन उच्च विचार होना चाहिए। फैशन के मामलों में विद्यार्थी को अपना जीवन कभी भी खर्च नहीं करना चाहिए।
विद्यार्थी का लक्ष्य बस अपने जीवन का निर्माण होना चाहिए। जो विद्यार्थी अपनी शिक्षा पर ध्यान देते हैं वे ही अपने जीवन में सफल होते हैं। बस फैशन के पीछे भागने वाले बाद में पछताते हैं।
Posted by Mohit Negi 5 years, 1 month ago
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Gaurav Seth 5 years, 1 month ago
शिवधनुष टूटने के साथ सीता स्वयंवर की खबर मिलने पर परशुराम जनकपुरी में स्वयंवर स्थान पर आ जाते है। हाथ में फरसा लिए क्राेिधत हो धनुष तोड़ने वाले को सामने आने, सहस्त्रबाहु की तरह दडिंत होने और न आने पर वहाँ उपस्थित सभी राजाओं को मारे जाने की धमकी देते हैं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए राम आगे बढ़कर कहते हैं कि धनुष-भंग करने का बड़ा काम उनका कोई दास ही कर सकता है। परशुराम इस पर और क्रोधित होते हैं कि दास होकर भी उसने शिवधनुष को क्यों तोड़ा। यह तो दास के उपयुक्त काम नहीं है। लक्ष्मण परशुराम को यह कहकर और क्रोधित कर देते हैं कि बचपन में शिवधनुष जैसे छोटे कितने ही धनुषों को उन्होंने तोड़ा, तब वे मना करने क्यो नहीं आए आरै अब जब पुराना आरै कमजाोर धनुष् श्रीराम के हाथों में आते ही टूट गया तो क्यों क्रोधित हो रहे हैं। परशुराम जब अपनी ताकत से ध्रती को कई बार क्षत्रियों से हीन करके बा्र ह्मणों को दान देने और गर्भस्थ शिशुओं तक के नाश करने की बात बताते हैं तो लक्ष्मण उन पर शूरवीरों से पाला न पड़े जाने का व्यंग्य करते हैं। वे अपने कुल की परंपरा में स्त्राी, गाय और ब्राह्मण पर वार न करके अपकीर्ति से बचने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ स्वयं को पहाड़ और परशुराम को एक फूँक सिद्ध् करते हैं। ऋषि विश्वामित्रा परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए लक्ष्मण को बालक समझकर माफ करने का आगह्र करते है। वे समझाते है। कि राम आरै लक्ष्मण की शक्ति का परशुराम को अंदाजा नहीं है। अंत में लक्ष्मण के द्वारा कही गई गुरुऋण उतारने की बात सुनकर वे अत्यंत क्रुद्ध् होकर फरसा सँभाल लेते हैं। तब सारी सभा में हाहाकार मच जाता है आरै तब श्रीराम अपनी मधुर वाणी से परशुराम की क्रोध रूपी अग्नि को शांत करने का प्रयास करते हैं।
Posted by Aziz Fatima 5 years, 1 month ago
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Gaurav Seth 5 years, 1 month ago
नई दिल्ली में सब था, सिर्फ नाक नहीं थी-यह कहकर लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि भारत के स्वतंत्र होने पर वह सर्वथा संपन्न हो चुका था, कहीं भी विपन्नता नहीं थी। अभाव था तो केवल आत्मसम्मान का, स्वाभिमान का। संपन्न होने पर भी देश परतंत्रता की मानसिकता से मुक्त नहीं हो सका है। अंग्रेज का नाम आते ही हीनता का भाव उत्पन्न होता था कि ये हमारे शासक रहे हैं। गुलामी का कलंक हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है। इसलिए लेखक कहता है कि दिल्ली में सिर्फ नाक नहीं I
Yogita Ingle 5 years, 1 month ago
नई दिल्ली में सब था, सिर्फ नाक नहीं थी-यह कहकर लेखक स्पष्ट करना चाहता है कि भारत के स्वतंत्र होने पर वह सर्वथा संपन्न हो चुका था, कहीं भी विपन्नता नहीं थी। अभाव था तो केवल आत्मसम्मान का, स्वाभिमान का। ... इसलिए लेखक कहता है कि दिल्ली में सिर्फ नाक नहीं भी।
Posted by Anjali Ahire 5 years, 1 month ago
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Ritika Talwar 5 years, 1 month ago
Harsh Janghu 5 years, 1 month ago
Yogita Ingle 5 years, 1 month ago
वाक्य में प्रयोग हुआ कोई पद व्याकरण की दृष्टि से विकारी है या अविकारी, यदि बिकारी है तो उसका भेद, उपभेद, लिंग, वचन पुरुष, कारक, काल अन्य शब्दों के साथ उसका संबंध और अविकारी है तो किस तरह का अव्यय है तथा उसका अन्य शब्दों से क या संबंध है आदि बताना व्याकरणिक परिचय कहलाता है।
पदों का परिचय देते समय निम्नलिखित बातें बताना आवश्यक होता है –
- संज्ञा–तीनों भेद, लिंग, वचन, कारक क्रिया के साथ संबंध।
- सर्वनाम-सर्वनाम के भेद, पुरुष, लिंग, वचन, कारक, क्रिया से संबंध।
- विशेषण-विशेषण के भेद, लिंग, वचन और उसका विशेष्य।
- क्रिया-क्रिया के भेद, लिंग, वचन, पुरुष, काल, वाच्य,धातु कर्म और कर्ता का उल्लेख।
- क्रियाविशेषण-क्रियाविशेषण का भेद तथा जिसकी विशेषता बताई जा रही है, का उल्लेख।
- समुच्चयबोधक-भेद, जिन शब्दों या पदों को मिला रहा है, का उल्लेख।
- संबंधबोधक-भेद, जिसके साथ संबंध बताया जा रहा है, का उल्लेख।
- विस्मयादिबोधक-हर्ष, भाव, शोक, घृणा, विस्मय आदि किसी एक भाव का निर्देश।
Posted by Neeraj Gupta 5 years, 1 month ago
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Posted by Aziz Fatima 5 years, 1 month ago
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Mitali Awasthi 5 years, 1 month ago
Souparnika T 5 years, 1 month ago
Posted by Souparnika T 5 years, 1 month ago
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Posted by Dhruv Ji 5 years, 1 month ago
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Pranav Choudhary 5 years, 1 month ago
Posted by Rishabh Pawar 5 years, 1 month ago
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Tanya Bhadauriya 5 years, 1 month ago
Posted by Munna Chaudhary 5 years, 1 month ago
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Posted by Rashu Siuu 5 years, 1 month ago
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Posted by Ayush Singh 5 years, 1 month ago
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Posted by Ayush Singh 5 years, 1 month ago
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Prince Ravat 5 years, 1 month ago

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Aanchal Singh Chauhan 4 years, 10 months ago
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