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Malaika Sharma 5 years ago

Kavita mein Lekhak hamko batate hain ki saccha manush wo hi hota hai jo dusron ke liye mare
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Yogita Ingle 5 years ago

इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर: फादर बुल्के एक सरल इंसान थे। उनमें करुणा लबालब भरी हुई थी। वे कभी भी किसी बात पर खीझते नहीं थे, लेकिन अपनी बात पूरे जोश से किसी के सामने रखते थे।

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Rishika Chandel 5 years ago

bhayaanak ras ...XD

Himanshu Verma 5 years ago

Bhayanak ras

Alisha. Afreen 5 years ago

,,?????

Ankit Kumar 5 years ago

Bhayanak ras ka
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Gaurav Seth 5 years ago

हमारे विद्यालय की फुटबॉल टीम का चंडीगढ़ की टीम से मुकाबला था। कुछ समयोपरांत मैच उस रोमांचक बिंदु पर पहुँच गया, जब हमारी टीम दो गोलों से पिछड़ने लगी। दोनों टीमों के कोच भी अपनी-अपनी यम को प्रोत्साहित करने में जुटे थे। खिलाड़ियों के लिए तो यह प्रतिष्ठा का ही नहीं वरन् जीवन-मरण के प्रश्न जैसा प्रतीत हो रहा था। दोनों यमों के खिलाड़ियों का उत्साह एवं आत्मविश्वास देखने योग्य था। तभी हमारी येम की तरफ से एक गोल दाग दिया गया। दर्शक खुशी से झूमने लगे। अब तो मुकाबले में बेहद रोमांच पैदा हो गया था। हमारी टीम को मैच बराबरी पर लाने के लिए केवल एक गोल की आवश्यकता थी। मेरे दिमाग में मेरे कोच की बातें गूंज रही थीं- “जी भर कर खेलो, पर दिमाग से खेलो। जी लो इस समय को ! महसूस करो कि यह मेरे जीवन का सबसे यादगार लम्हा है। इसके साथ ही मैं तनावरहित होकर जीत की दिशा में अग्रसर हो गया। कुछ देर में ही मैं टीम का हीरो बन गया, जब मैंने दनादन दो गोल दागकर प्रतिपक्षी टीम को हरा दिया। सारा मैदान तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। हमारी टीम ने इतिहास रच डाला था। टीम के कोच भी बहुत भावुक होकर मेरी पीठ थपथपाने लगे। दर्शक मित्रों का साँस रोककर मैच देखने का रोमांच भी खुशी में तब्दील हो चुका था। टीम के बाकी खिलाड़ियों के कंधों पर सवार मैं अपने जीवन के सर्वाधिक यादगार पल को, ईश्वर को धन्यवाद देता महसूस कर रहा था। 

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Nandani Singh 5 years ago

Munshi Premchand
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Gaurav Seth 5 years ago

प्रस्तावना- मानव जीवन में परिश्रम बहुत आवश्यक है। परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। परिश्रम द्वारा छोटे से छोटा मनुष्य बड़ा बन सकता है। परिश्रम के द्वारा सभी कार्य सम्भव हैं। यदि मनुष्य कोई भी काम कठोर परिश्रम एवं दृढ़ संकल्प लेकर करता है तो वह उस काम में सफलता अवश्य पाता है।

जीवन के प्राचीन युग से लेकर आधुनिक युग तक ग्राम-नगरों का विकास, अनेक उपकरणों एवं मशीनों का शिल्प लेकर वायुयान तक का निर्माण परिश्रम द्वारा ही सम्भव हुआ है। संसार में मानव अधिक परिश्रम कर अपनी तकदीर बदल सकता है।

विभिन्न अर्थशास्त्रिष्यों एवं इतिहासकारों द्वारा परिश्रम को ही जीवन का सार माना गया है। संसार की किसी भी वस्तु का निर्माण परिश्रम बिना सम्भव नहीं है। परिश्रमी व्यक्ति को दूसरों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं होती, वह अपना कार्य स्वंय कर लेते हैं।

आज मानव ने परिश्रम के द्वारा संसार में स्वर्ग उतारने की कल्पना को साकार कर दिया हैं | कठोर परिश्रम करके ही मानव ने अनेक आविष्कार किये हैं जो मानव जीवन में बहुत उपयोगी हैं। मनुष्य के मनोरंजन ने दूरदर्शन, सिनेमा, मोबाइल, कम्प्यूटर एवं अनेक प्रकार के मनोरंजन के साधनों का आविष्कार किया है। ये सब केवल परिश्रम द्वारा ही सम्भव हो सकता है। यदि मानव परिश्रम नहीं करेगा तो वह सरल से सरल काम को भी कठिनाई से पूर्ण करेगा। परिश्रमी मनुष्य कभी भी भूखा नहीं रह सकता। परिश्रमी व्यक्ति के लिए सफलता उसकी दासी के रूप में होती है।

परिश्रम का महत्व- परिश्रम ही मानव जीवन की सफलता की कुंजी है। आज जितने भी बड़े-बड़े उधोगपति, राजनेता, अभिनेता, हैं वे सभी कठोर परिश्रम करके ही सफल हुए हैं, वे दिन-रात मेहनत एवं परिश्रम करते हैं और यह उनके परिश्रम का ही नतीजा है कि आज वे पूरे संसार में प्रसिद्व हैं, बड़ी-बड़ी उपलब्धियां प्राप्त कर रहे हैं।

हमें किसी भी काम को कठिन नहीं समझना चाहिये। यदि हममें परिश्रम करने की क्षमता है तो हम जटिल से जटिल काम सरलता से कर सकते हैं। परिश्रम के द्वारा मानव अपने में नये जीवन का संसार कर सकता है। अतः परिश्रम का महत्व अद्भुत तथा अनोखा है।

मानव जीवन का विकास- परिश्रम द्वारा मानव जीवन का विकास सम्भव है। प्राचीन काल में मानव का शरीर बन्दर जैसा था। वह अपने खाने तथा जीविका को चलाने के लिए निरन्तर परिश्रम करता रहता रहा। धीरे-धीरे मानव का विकास हुआ और वह कठोर परिश्रम कर एक दिन जानवर सीधा होकर सिर्फ पैरों के सहारे चलने लगा। इस सिद्वान्त का प्रतिपादन महान् वैज्ञानिक डार्विन ने तय किया है। परिश्रम द्वारा ही गुफाओं की दुनिया से निकलकर वह पेड़ों पर विचरण करते हुए जीविका की खोज में आगे बढ़ा। टोली बनाकर रहने लगा और अपनी अधिक प्रगति के लिए वह खेती करने लगा। रहने के लिए घर बनाने लगा, छोटी-छोटी वस्तुओं का निर्माण करने लगा। आज नगरों में जो सभ्यता एवं संस्कृति दिखलाई पड़ती है, वह सब परिश्रम द्वारा सम्भव हुई है। जापान संसार के विकासशील देशों मे इसलिए गिना जाने लगा है क्योंकि वहां के लोग संसार के सबसे अधिक परिश्रमी होते हैं।
परिश्रम की उपयोगिता- मानव जीवन में परिश्रम बहुत उपयोगिता रखती है। परिश्रम को अपनाकर ही मानव आसमान की बुलंदियों को अवश्य छूता है।

मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिश्रम उपयोगी है। चित्रकार या मूर्तिकार कम परिश्रम नहीं करता है। वह एक मूर्ति का निर्माण करने में, उसको आकार देने में रात-दिन एक कर देता है। तब कहीं जाकर वह जिस मूर्ति का निर्माण करता है, उसमे सफल होता है। वह प्रसिद्व मूर्तिकार कहलाता है।

किसान भी कड़ी धूप एवं चिलचिलाती गर्मी में कृषि का अत्यधिक परिश्रम करता है और उसी के परिश्रम का फल पूरे संसार को मिलता है। महात्मा गाँधी परिश्रमी जीवन को सच्चा जीवन मानते थे। अतः जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम का अत्यधिक योग एवं महत्व है। व्यापारी और उधोगपति दिन-रात परिश्रम करके बरसों में धनवान और उधोगपति बन जाते हैं तब जाकर दुनिया उनकी ओर देखती है। उनसे उनकी सफलता का राज पूछा जाता है तो वे एक ही वाक्य कहते हैं- कठिन परिश्रम।

परिश्रम- साहित्य के क्षेत्र में- आज विश्व मे साहित्य की जितनी भी सफलता एंव उपलब्धि हैं वह परिश्रम द्वारा ही सम्भव हुई हैं। महाकवि तुलसीदास ने दिन-रात परिश्रम कर प्रसिद्व धार्मिक ग्रन्थ ‘रामचरितमानस‘ की रचना की। इसी प्रकार कालीदास ने कठोर परिश्रम द्वारा ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्‘ की रचना की थी।

संस्कृत साहित्य का विशाल ग्रन्थ ‘महाभारत‘ भी अनेक वर्षों तक किये गये परिश्रम का ही फल है।
पाश्चात्य विद्वाप एवं कोशाकार वेबस्टर ने अंग्रेजी शब्दकोष का निर्माण करने में अनेक वर्षों तक कठिन परिश्रम किया और अन्त में अपने कार्य में सफलता प्राप्त की।

उपसंहार- इस प्रकार परिश्रम ही मानव जीवन की सफलता की कुंजी है। हमें निरन्तर करते रहना चाहिये तभी हमें अच्छे फल की प्राप्ति होगी।

यदि हमें दूसरों की सफलता देखनी है तो इस बात को पहले देखना चाहिये कि उनकी इस सफलता के पीछे उनका परिश्रम लगा हुआ है। परिश्रम को देखकर सफलता का आकंलन हम करने लगें तो खुद भी प्रेरित होकर उतना ही परिश्रम करके वैसा ही सफल होने की हिम्मत जुटा सकते हैं।

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Gaurav Seth 5 years ago

इन साखियों में कबीर ईश्वर प्रेम के महत्त्व को प्रस्तुत कर रहे हैं। पहली साखी में कबीर मीठी भाषा का प्रयोग करने की सलाह देते हैं ताकि दूसरों को सुख और और अपने तन को शीतलता प्राप्त हो। दूसरी साखी में कबीर ईश्वर को मंदिरों और तीर्थों में ढूंढ़ने के बजाये अपने मन में ढूंढ़ने की सलाह देते हैं। तीसरी साखी में कबीर ने अहंकार और ईश्वर को एक दूसरे से विपरीत (उल्टा ) बताया है। चौथी साखी में कबीर कहते हैं कि प्रभु को पाने की आशा उनको संसार के लोगो से अलग करती है। पांचवी साखी में कबीर कहते हैं कि ईश्वर के वियोग में कोई व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, अगर रहता भी है तो उसकी स्थिति पागलों जैसी हो जाती है। छठी साखी में कबीर निंदा करने वालों को हमारे स्वभाव परिवर्तन में मुख्य मानते हैं। सातवीं साखी में कबीर ईश्वर प्रेम के अक्षर को पढने वाले व्यक्ति को पंडित बताते हैं और अंतिम साखी में कबीर कहते हैं कि यदि ज्ञान प्राप्त करना है तो मोह - माया का त्याग करना पड़ेगा।

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Gaurav Seth 5 years ago

यौवन जिंदगी का सर्वाधिक मादक अवस्था होता है । इस अवस्था को भोग रहा युवक वर्ग ,केवल देश की शक्ति ही नहीं, बल्कि वहाँ की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतीक भी होता है । अगर हम यह मानते हैं कि, यह संसार एक उद्यान है, तो ये नौजवान इस उद्यान की सुगंध हैं । युवा वर्ग किसी भी काल या देश का आईना होता है जिसमें हमें उस युग का भूत, वर्तमान और भविष्य , साफ़ दिखाई पड़ता है । इनमें इतना जोश रहता है कि ये किसी भी चुनौती को स्वीकारने के लिये तैयार रहते हैं । चाहे वह कुर्बानी ही क्यों न हो, नवयुवक अतीत का गौरव और भविष्य का कर्णधार होता है और इसी में यौवन की सच्ची सार्थकता भी है ।

 

 

 

 

हमारे दूसरे वर्ग, बूढ़े- बुजुर्ग जिनके बनाये ढ़ाँचे पर यह समाज खड़ा रहता आया है; उनका कर्त्तव्य बनता है कि इन नव युवकों के प्रति अपने हृदय में स्नेह और आदर की भावना रखें, साथ ही बर्जना भी । ऐसा नहीं होने पर, अच्छे-बुरे की पहचान उन्हें कैसे होगी ? आग मत छूओ, जल जावोगे; नहीं बताने से वे कैसे जानेंगे कि आग से क्या होता है ? माता-पिता को या समाज के बड़े-बुजुर्गों को भी, नव वर्ग के बताये रास्ते अगर सुगम हों, तो उन्हें झटपट स्वीकार कर उन रास्तों पर चलने की कोशिश करनी चाहिये ।

 

 

 

 

ऐसे आज 21वीं सदी की युवा शक्ति की सोच में,और पिछले सदियों के युवकों की सोच में जमीं-आसमां का फ़र्क आया है । आज के नव युवक , वे ढ़ेर सारी सुख-सुविधाओं के बीच जीवन व्यतीत करने की होड़ में अपने सांस्कृतिक तथा पारिवारिक मूल्यों और आंतरिक शांति को दावँ पर लगा रहे हैं । सफ़लता पाने की अंधी दौड़, जीवन शैली को इस कदर अस्त-व्यस्त और विकृत कर दिया है कि आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण ,उनके जीवन को बर्वाद कर दे रहा है । उनकी सहनशीलता खत्म होती जा रही है । युवकों के संयमहीन व्यवहार के लिए हमारे आज के नेता भी दोषी हैं । आरक्षण तथा धर्म-जाति के नाम पर इनका इस्तेमाल कर, इनकी भावनाओं को अपने उग्र भाषणों से भड़काते हैं और युवाओं की ऊर्जा का गलत प्रयोग कर अपने स्वार्थ की पूर्ति करते है ;जिसके फ़लस्वरूप आज युवा वर्ग भटक रहा है । धैर्य, नैतिकता, आदर्श जैसे शब्द उनसे दूर होते जा रहे हैं । पथभ्रष्ट और दिशाहीन युवक, एक स्वस्थ देश के लिए चिंता का विषय है । आज टेलीवीजन , जो घर-घर में पौ फ़टते ही अपराधी जगत का समाचार, लूट, व्यभिचार, चोरी का समाचार लेकर उपस्थित हो जाता है,या फ़िर गंदे अश्लील गानों को बजने छोड़ देता है । कोई अच्छा समाचार शायद ही देखने मिलता है । ये टेलीवीजन चैनल भी युवा वर्ग को भटकाने में अहम रोल निभा रहे हैं । दूसरी ओर इनकी इस दयनीय मनोवृति के लिये उनके माता-पिता व अभिभावक भी कम दोषी नहीं हैं । वे बच्चों की मानसिक क्षमता का आंकलन किये बिना उन्हें आई० ए० एस०, पी०सी० एस०, डाक्टर, वकील, ईंजीनियर आदि बनाने की चाह पाल बैठते हैं और जब बच्चों द्वारा उनकी यह चाहत पूरी नहीं होती है, तब उन्हें कोसने लगते हैं । जिससे बच्चों का मनोबल गिर जाता है । वे घर में तो चुपचाप होकर उनके गुस्से को बरदास्त कर लेते हैं; कोई वाद-विवाद में नहीं जाते हैं, यह सोचकर,कि माता-पिता को भविष्य के लिये और अधिक नाराज करना ठीक नहीं होगा । लेकिन ये युवक जब घर से बाहर निकलते हैं, तब बात-बात में अपने मित्रों, पास-पड़ोसी से झगड़ जाते हैं । इसलिये भलाई इसी में है कि बच्चों की मानसिक क्षमता के अनुसार ही माँ-बाप को अपनी अपेक्षा रखनी चाहिये । अन्यथा उनके व्यक्तित्व का संतुलित विकास नहीं हो पायेगा ; जो कि बच्चों के भविष्य के लिये बहुत हानिकर है ।

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Ms ? 4 years, 11 months ago

उत्तर : सआदत अली अवध के नवाब आसिफउद्दौला का छोटा भाई था। आसिफउद्दौला के कोई लड़का न था अतः सआदत अली यह मान बैठा था कि बड़े भाई के बाद वही अवध का नवाब बनेगा। उसे भाई के यहाँ बेटा होने की कोई उम्मीद न थी। पर जब उनके यहाँ वजीर अली का जन्म हो गया तो उसके सारे सपने चकनाचूर हो गए।यही कारण था कि उसने वजीर अली की पैदाइश को अपनी मौत समझा।

Arif Ali 4 years, 11 months ago

Book se dekh na pagal

Diyanshu Thakur 4 years, 11 months ago

Answers of book NCERT questions of chapter Sapnon Ke vo Din

Chetan Verma 4 years, 11 months ago

About alankar

Satyam Kr 5 years ago

Kyuki agar Wazir Ali ne janam le liya to ...usse kabhi v singhasan par baithne ka awsar nhi milega...isilye usene Wazir ke janm ko apna maut maan liya
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None None 5 years ago

Xgu khobovxxj e7jc9dyuuc hxjfyOc
  • 1 answers

Kracker Kick 5 years ago

Laghukatha
  • 3 answers

Prakriti Ray 5 years ago

Plz correct it it's balidan not Baliram and kahaniyan not kqhaniyan

Prakriti Ray 5 years ago

Tantara vamiro ki premkathaa ghar Ghar sunai jati thi kyunki samaj k Kalyan me kai bar logon Ko Apne Prem ka Baliram Dena padta h unke sache Prem Ko dekhte huy ghar ghar me unki kqhaniyan sunai jati thi

Ravi Amish 5 years ago

So that they don't follow that old rule
  • 1 answers

Gaurav Seth 5 years ago

समास ‘संक्षिप्तिकरण’ को समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में समास संक्षेप करने की एक प्रक्रिया है। दो या दो से अधिक शब्दों का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले शब्दों अथवा कारक चिह्नों का लोप होने पर उन दो अथवा दो से अधिक शब्दों के मेल से बने एक स्वतन्त्र शब्द को समास कहते हैं। उदाहरण ‘दया का सागर’ का सामासिक शब्द बनता है ‘दयासागर’।

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Sanjay Kumar 5 years ago

शब्दो के समूह से

Adarsh Singh 5 years ago

पदों से

Archi Jain 5 years ago

पद से

Suraj Bhardwaj 5 years ago

जिस शब्द समूह से या लेखक का
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Gaurav Seth 5 years ago

मित्रता अनमोल धन है। इसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है। हीरे-मोती या सोने-चाँदी से भी नहीं। मैत्री की महिमा बहुत बड़ी है। सच्चा मित्र सुख और दुख में समान भाव से मैत्री निभाता है। जो केवल सुख में साथ होता है, उसे सच्चा मित्र नहीं कहा जा सकता। साथ-साथ खाना-पीना, सैर, पिकनिक का आनंद लेना सच्ची मित्रता का लक्षण नहीं। सच्चा मित्र तो दीर्घ काल के अनुभव से ही बनता है। सच्ची मित्रता की बस एक पहचान है और वह है-विचारों की एकता। विचारों की एकता ही इसे दिनोंदिन प्रगाढ़ करती है। सच्चा मित्र बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है।

जहाँ थाह न लगे, वही बाँह बढ़ाकर उबार लेता है। मित्रता करना तो आसान है, लेकिन निभाना बहुत ही मुश्किल। आज मित्रता का दुरुपयोग होने लगा है। लोग अपने सीमित स्वार्थों की पूर्ति के लिए मित्रता का ढोंग रचते हैं। मित्र जो केवल काम निकालना जानते हैं, जो केवल सख के साथी हैं और जो वक्त पड़ने पर बहाना बनाकर किनारे हो जाते हैं. वे मित्रता को कलंकित करते हैं। मित्रता जीवन का सर्वश्रेष्ठ अनुभव है।

यह एक ऐसा मोती है, जिसे गहरे सागर में डूबकर ही पाया जा सकता है। मित्रता की कीमत केवल मित्रता ही है। सच्ची मित्रता जीवन का वरदान है। यह आसानी से नहीं मिलती। एक सच्चा मित्र मिलना सौभाग्य की बात होती है। सच्चा मित्र मनुष्य की सोई किस्मत को जगा सकता है और भटके को सही राह दिखा सकता है।

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