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Ask QuestionPosted by Rohit Bera 5 years ago
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Posted by Rohit Bera 5 years ago
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Posted by Priya Yadav 5 years ago
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Posted by Sonu Bhati 5 years ago
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Shivam Raj 5 years ago
Posted by Dhiraj Singh 5 years ago
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Posted by Samay Jolly 5 years ago
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Posted by Sona Choudhary 5 years ago
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Seema Choudhary 5 years ago
Jagrati Sharma?? 5 years ago
Posted by Vishal Shah 5 years ago
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Posted by Charvi Sangwan 5 years ago
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Gaurav Seth 5 years ago
उत्साह
बादल, गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुंघराले,
बाल कल्पना के से पाले,
विद्युत छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो
बादल गरजो!
इस कविता में कवि ने बादल के बारे में लिखा है। कवि बादलों से गरजने का आह्वान करता है। कवि का कहना है कि बादलों की रचना में एक नवीनता है। काले-काले घुंघराले बादलों का अनगढ़ रूप ऐसे लगता है जैसे उनमें किसी बालक की कल्पना समाई हुई हो। उन्हीं बादलों से कवि कहता है कि वे पूरे आसमान को घेर कर घोर ढ़ंग से गर्जना करें। बादल के हृदय में किसी कवि की तरह असीम ऊर्जा भरी हुई है। इसलिए कवि बादलों से कहता है कि वे किसी नई कविता की रचना कर दें और उस रचना से सबको भर दें।
<hr />विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो –
बादल, गरजो!
इन पंक्तियों में कवि ने तपती गर्मी से बेहाल लोगों के बारे में लिखा है। सभी लोग तपती गर्मी से बेहाल हैं और उनका मन कहीं नहीं लग रहा है। ऐसे में कई दिशाओं से बादल घिर आए हैं। कवि उन बादलों से कहता है कि तपती धरती को अपने जल से शीतल कर दें।
Posted by Ratan Singh 5 years ago
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Yogita Ingle 5 years ago
गोपियों ने योग की शिक्षा को कड़वी ककड़ी के समान बताया है। गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि तुम्हारे द्वारा दिया जाने वाला योग का संदेश हमें कड़वी ककड़ी के समान अप्रिय है। कृष्ण के अतिरिक्त अब और कोई हमें सुहाता नहीं है।
Posted by Kumkum Kumari 5 years ago
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Posted by Aryan Sharma 5 years ago
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Posted by Dilraj Kâlêsh 5 years ago
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Dilraj Kâlêsh 4 years, 11 months ago
Posted by Manveer Singh 5 years ago
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Posted by Manu Singhal 5 years ago
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Posted by Hariram Choudhary 5 years ago
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Gaurav Seth 5 years ago
पान वाले के लिए मजेदार बात ये थी कि मास्टर जी आपने चस्मा लगाना भूल गए थे
Posted by Anuja Panwar 5 years ago
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Gaurav Seth 5 years ago
A n s w e r :
हालदार साहब हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में एक कस्बे से गुजरते थे। जहाँ बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी की मूर्ति लगी थी।
Posted by Anupama ?? 5 years ago
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Avatar ? 5 years ago
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Seema Choudhary 5 years ago
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