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Ruby Kumari 5 years ago

दो बैलों की कथा के माध्यम से प्रेमचंद्र ने कृषक समाज और पशुओं के भावात्मक संबंध का वर्णन किया हैl झूरी बैलों को बहुत चाहता था उन्हें गले लगाकर खूब प्यार करता था और गया का व्यवहार बहनों के प्रति अच्छा नहीं था वह उन्हें खूब मारता था और सूखा भूसा ही देता थाl
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Ruby Kumari 5 years ago

दूसरी साखी का अर्थ है - कबीर जी संसार में किसी प्रिय जन को ढूंढते फिरते हैंl परंतु उन्हें इस संसार में कहीं भी कोई प्रयोजन नहीं मिलाl वह कहते हैं कि जब दो प्रेमी परस्पर मिल जाते हैं तो किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रहता हैl भावार्थ यह है कि समस्त भेदभाव भुलाकर ही प्रेमी को पाया जा सकता है l तीसरी साखी का अर्थ है - कबीर जी साधकों को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि ज्ञान प्राप्त करके अपना सामर्थ बढ़ाते रहिए l ज्ञान प्राप्त करने के लिए सहज रूप में दलितों अर्थात प्रेम रूपी कालीन बिछा दोl अर्थात ज्ञान को हम भाव त्याग कर पाया जा सकता है l यह संसार तो कुत्ते की तरह भोंक भोंक कर अपना समय व्यतीत कर रहे हैं l भावार्थ यह है कि सांसारिक लोग सांसारिक सुखों को पाने में अपना समर्थ व्यर्थ गवाते हैं l सच्चे साधक को अहंकार और सांसारिक विषयों से ध्यान हटाकर ईश्वर के प्रेम में निमग्न हो जाना चाहिए l चौथी साखी का अर्थ यह है कि- कबीर जी कहते हैं कि सांसारिक लोग संसार और भगवान के प्रति पक्ष विपक्ष में रहकर सत्य को भूल जाते हैंl सच्चे साधक को इन सब मतदान दलों के प्रतिनिधि पक्ष रहकर हमेशा भगवान की याद में तत्पर रहना चाहिए l जो व्यक्ति निरपेक्ष भाव से भगवान को याद करता है , वही सच्चा संत अथवा सज्जन होता है l भावार्थ यह है कि भगवान को संसार में भगवान के प्रति निष्पक्ष भाव अपनाकर आसानी से पाया जा सकता है l पांचवी साखी का अर्थ यह है कि- कबीर जी कहते हैं कि हिंदू लोग परमात्मा के लिए राम राम तथा मुसलमान खुदा खुदा कहते हुए जन्म मरण के चक्र बंधन में पड़े रहते हैंl कबीर जी कहते हैं कि वास्तव में जीवित वही है जो राम और खुदा को लेकर दुविधा ग्रस्त नहीं होते हैं l जो इन दोनों में द्वैत भाव रखता है वह दुविधा में नहीं रहेगा l अतः जीवन की सार्थकता इन दोनों में अदरक भाव अपना कर भेज बुद्धि से ऊपर उठने में है l छठवीं सातवीं का यह अर्थ है कि - संप्रदायों के सभी ग्रहों को छोड़कर मध्यम मार्ग अपनाने पर काबा - काशी एक हो जाते हैं राम रहीम बन जाता हैl संप्रदायों की लोरियां समाप्त हो जाती हैंl भेद रूपी मोटा आटा अभेद का महीन मैदा बन जाता हैl अतः कबीर जी कहते हैं कि साधक को अभेद रूपी मैदे का भोजन कर स्थूल भेदों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिएl
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Dhanpat rai

Shraddha Panchbhai 5 years, 1 month ago

Dhanpat rai
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Shraddha Panchbhai 5 years, 1 month ago

taki pata chale ki kanhi koi pashu bahaga to nahi h
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Ruby Kumari 5 years ago

हीरा और मोती

Champ Rawat 5 years, 1 month ago

Hira or moti

Yash Bhardwaj 5 years, 1 month ago

Hi
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Sia ? 5 years, 1 month ago

Bharat, the name for India in several Indian languages, is variously said to be derived from the name of either Dushyanta's son Bharata or Rishabha's son Bharata.

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Amit Raja 5 years, 1 month ago

प्रति+अक्ष

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