Ask questions which are clear, concise and easy to understand.
Ask QuestionPosted by Mukesh Kumar Sah 6 years, 3 months ago
- 0 answers
Posted by Abhishek Pal 6 years, 3 months ago
- 0 answers
Posted by Saurav Kumar 6 years, 3 months ago
- 5 answers
Sonali Aggarwal 6 years, 3 months ago
Abu'l-Fath Jalal-ud-din Muhammad Akbar, popularly known as Akbar I, also as Akbar the Great, was the third Mughal emperor, who reigned from 1556 to 1605.
Posted by Alok Srivastav 6 years, 3 months ago
- 0 answers
Posted by Prince Jha 6 years, 3 months ago
- 2 answers
Maria Anna Alwin 6 years, 3 months ago
(1) गूढ़क (गुप्त रूप से) – अर्थात अपना मत किसी पत्र पर लिखकर जिसमें वोट देने वाले व्यक्ति का नाम नहीं आता था।
(2) विवृतक (प्रकट रूप से) – इस प्रक्रिया में व्यक्ति संबंधित विषय के प्रति अपने विचार सबके सामने प्रकट करता था। अर्थात खुले आम घोषणा।
(3) संकर्णजल्पक (शलाकाग्राहक के कान में चुपके से कहना) - सदस्य इन तीनों में से कोई भी एक प्रक्रिया अपनाने के लिए स्वतंत्र थे। शलाकाग्राहक पूरी मुस्तैदी एवं ईमानदारी से इन वोटों का हिसाब करता था।
इस तरह हम पाते हैं कि प्राचीन काल से ही हमारे देश में गौरवशाली लोकतंत्रीय परम्परा थी। इसके अलावा सुव्यवस्थित शासन के संचालन हेतु अनेक मंत्रालयों का भी निर्माण किया गया था। उत्तम गुणों एवं योग्यता के आधार पर इन मंत्रालयों के अधिकारियों का चुनाव किया जाता था।
मंत्रालयों के प्रमुख विभाग थे-
(1) औद्योगिक तथा शिल्प संबंधी विभाग
(2) विदेश विभाग
(3) जनगणना
(4) क्रय-विक्रय के नियमों का निर्धारण
मंत्रिमंडल का उल्लेख हमें अर्थशास्त्र, मनुस्मृति, शुक्रनीति, महाभारत, इत्यादि में प्राप्त होता है। यजुर्वेद और ब्राह्मण ग्रंथों में इन्हें 'रत्नि' कहा गया। महाभारत के अनुसार मंत्रिमंडल में 6 सदस्य होते थे। मनु के अनुसार सदस्य संख्या 7-8 होती थी। शुक्र ने इसके लिए 10 की संख्या निर्धारित की थी।
इनके कार्य इस प्रकार थे:-
(1) पुरोहित- यह राजा का गुरु माना जाता था। राजनीति और धर्म दोनों में निपुण व्यक्ति को ही यह पद दिया जाता था।
(2) उपराज (राजप्रतिनिधि)- इसका कार्य राजा की अनुपस्थिति में शासन व्यवस्था का संचालन करना था।
(3) प्रधान- प्रधान अथवा प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल का सबसे महत्वपूर्ण सदस्य था। वह सभी विभागों की देखभाल करता था।
(4) सचिव- वर्तमान के रक्षा मंत्री की तरह ही इसका काम राज्य की सुरक्षा व्यवस्था संबंधी कार्यों को देखना था।
(5) सुमन्त्र- राज्य के आय-व्यय का हिसाब रखना इसका कार्य था। चाणक्य ने इसको समर्हत्ता कहा।
(6) अमात्य- अमात्य का कार्य संपूर्ण राज्य के प्राकृतिक संसाधनों का नियमन करना था।
(7) दूत- वर्तमान काल की इंटेलीजेंसी की तरह दूत का कार्य गुप्तचर विभाग को संगठित करना था। यह राज्य का अत्यंत महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील विभाग माना जाता था।
इनके अलावा भी कई विभाग थे। इतना ही नहीं वर्तमान काल की तरह ही पंचायती व्यवस्था भी हमें अपने देश में देखने को मिलती है। शासन की मूल इकाई गांवों को ही माना गया था। प्रत्येक गांव में एक ग्राम-सभा होती थी। जो गांव की प्रशासन व्यवस्था, न्याय व्यवस्था से लेकर गांव के प्रत्येक कल्याणकारी काम को अंजाम देती थी। इनका कार्य गांव की प्रत्येक समस्या का निपटारा करना, आर्थिक उन्नति, रक्षा कार्य, समुन्नत शासन व्यवस्था की स्थापना कर एक आदर्श गांव तैयार करना था। ग्रामसभा के प्रमुख को ग्रामणी कहा जाता था।
सारा राज्य छोटी-छोटी शासन इकाइयों में बंटा था और प्रत्येक इकाई अपने में एक छोटे राज्य सी थी और स्थानिक शासन के निमित्त अपने में पूर्ण थी। समस्त राज्य की शासन सत्ता एक सभा के अधीन थी, जिसके सदस्य उन शासन-इकाइयों के प्रधान होते थे।
एक निश्चित काल के लिए सबका एक मुख्य अथवा अध्यक्ष निर्वाचित होता था। यदि सभा बड़ी होती तो उसके सदस्यों में से कुछ लोगों को मिलाकर एक कार्यकारी समिति निर्वाचित होती थी। यह शासन व्यवस्था एथेन्स में क्लाइस्थेनीज के संविधान से मिलती-जुलती थी। सभा में युवा एवं वृद्ध हर उम्र के लोग होते थे। उनकी बैठक एक भवन में होती थी, जो सभागार कहलाता था।
एक प्राचीन उल्लेख के अनुसार अपराधी पहले विचारार्थ 'विनिच्चयमहामात्र' नामक अधिकारी के पास उपस्थित किया जाता था। निरपराध होने पर अभियुक्त को वह मुक्त कर सकता था पर दण्ड नहीं दे सकता था। उसे अपने से ऊंचे न्यायालय भेज देता था। इस तरह अभियुक्त को छः उच्च न्यायालयों के सम्मुख उपस्थित होना पड़ता था। केवल राजा को दण्ड देने का अधिकार था। धर्मशास्त्र और पूर्व की नजीरों के आधार पर ही दण्ड होता था।
देश में कई गणराज्य विद्यमान थे। मौर्य साम्राज्य का उदय इन गणराज्यों के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। परन्तु मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात कुछ नये लोकतांत्रिक राज्यों ने जन्म लिया। यथा यौधेय, मानव और आर्जुनीयन इत्यादि।
प्राचीन भारत के कुछ प्रमुख गणराज्यों का ब्योरा इस प्रकार है:-
शाक्य- शाक्य गणराज्य वर्तमान बस्ती और गोरखपुर जिला (उत्तर प्रदेश) के क्षेत्र में स्थित था। इस गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु थी। यह सात दीवारों से घिरा हुआ सुन्दर और सुरक्षित नगर था। इस संघ में अस्सी हजार कुल और पांच लाख जन थे। इनकी राजसभा, शाक्य परिषद के 500 सदस्य थे। ये सभा प्रशासन और न्याय दोनों कार्य करती थी। सभाभवन को सन्यागार कहते थे। यहां विशेषज्ञ एवं विशिष्ट जन विचार-विमर्श कर कोई निर्णय देते थे। शाक्य परिषद का अध्यक्ष राजा कहलाता था। भगवान बुद्ध के पिता शुद्धोदन शाक्य क्षत्रिय राजा थे। कौसल के राजा प्रसेनजित के पुत्र विडक्घभ ने इस गणराज्य पर आक्रमण कर इसे नष्ट कर दिया था।
लिच्छवि- लिच्छवि गणराज्य गंगा के उत्तर में (वर्तमान उत्तरी बिहार क्षेत्र) स्थित था। इसकी राजधानी का नाम वैशाली था। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बसाढ़ ग्राम में इसके अवशेष प्राप्त होते हैं। लिच्छवि क्षत्रिय वर्ण के थे। वर्द्धमान महावीर का जन्म इसी गणराज्य में हुआ था। इस गणराज्य का वर्णन जैन एवं बौद्ध ग्रंथों में प्रमुख रूप से मिलता है। वैशाली की राज्य परिषद में 7707 सदस्य होते थे। इसी से इसकी विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है। शासन कार्य के लिए दो समितियां होती थीं। पहली नौ सदस्यों की समिति वैदेशिक सम्बन्धों की देखभाल करती थी। दूसरी आठ सदस्यों की समिति प्रशासन का संचालन करती थी। इसे इष्टकुल कहा जाता था। इस व्यवस्था में तीन प्रकार के विशेषज्ञ होते थे- विनिश्चय महामात्र, व्यावहारिक और सूत्राधार।
लिच्छवि गणराज्य तत्कालीन समय का बहुत शक्तिशाली राज्य था। बार-बार इस पर अनेक आक्रमण हुए। अन्तत: मगधराज अजातशत्रु ने इस पर आक्रमण करके इसे नष्ट कर दिया। परंतु चतुर्थ शताब्दी ई. में यह पुनः एक शक्तिशाली गणराज्य बन गया।
वज्जि- लिच्छवि, विदेह, कुण्डग्राम के ज्ञातृक गण तथा अन्य पांच छोटे गणराज्यों ने मिलकर जो संघ बनाया उसी को वज्जि संघ कहा जाता था। मगध के शासक निरन्तर इस पर आक्रमण करते रहे। अन्त में यह संघ मगध के अधीन हो गया।
अम्बष्ठ- पंजाब में स्थित इस गणराज्य ने सिकन्दर से युद्ध न करके संधि कर ली थी।
अग्रेय- वर्तमान अग्रवाल जाति का विकास इसी गणराज्य से हुआ है। इस गणराज्य में सिकंदर की सेनाओं का डटकर मुकाबला किया। जब उन्हें लगा कि वे युद्ध में जीत हासिल नहीं कर पायेंगे तब उन्होंने स्वयं अपनी नगरी को जला लिया।
इनके अलावा अरिष्ट, औटुम्वर, कठ, कुणिन्द, क्षुद्रक, पातानप्रस्थ इत्यादि गणराज्यों का उल्लेख भी प्राचीन गंथों में मिलता है।
Maria Anna Alwin 6 years, 3 months ago
Posted by Adarsh Kumar Gupta Gupta 6 years, 3 months ago
- 0 answers
Posted by Reou Gaming 6 years, 3 months ago
- 0 answers
Posted by Sapna Sharma 6 years, 3 months ago
- 0 answers
Posted by Ankit Gautam 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Parnavi Singh 6 years, 4 months ago
- 2 answers
Posted by Rama Garg 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Pushpendra Dohre 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Rohit Sharma 6 years, 4 months ago
- 2 answers
Posted by Govind Kumar 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Chandana Sinha 6 years, 4 months ago
- 1 answers
Shyam Kumar Singh 4 years, 7 months ago
Posted by Govind Ram 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Govind Ram 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Kumkum Dubey 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Jatin Rathore 6 years, 4 months ago
- 1 answers
Posted by Raaz Raaz 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Sahil Joshi 6 years, 4 months ago
- 1 answers
Sakshi Singh 6 years, 4 months ago
Posted by Ishika Chaurasia 6 years, 4 months ago
- 1 answers
A Chirag 6 years, 4 months ago
Posted by Lalit Kumar 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Tarachand Ravi 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Harshvardhan Singh Chandrawat 6 years, 4 months ago
- 1 answers
Posted by Asneha Kumari 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Junaid Khan 6 years, 4 months ago
- 0 answers
Posted by Pulkit Sanskar 6 years, 4 months ago
- 2 answers
myCBSEguide
Trusted by 1 Crore+ Students
Test Generator
Create papers online. It's FREE.
CUET Mock Tests
75,000+ questions to practice only on myCBSEguide app