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Prashant Sheoran 4 years, 7 months ago

Chup

Kanala Bhavana 4 years, 8 months ago

There is no नपुंसलिङ्गे for ram. Ram is पुल्लिंग.
  • 5 answers

Radhey Sahu 4 years, 8 months ago

देहस्य का समानारथी

Radhey Sahu 4 years, 8 months ago

Bsa

Shubh Saxena 4 years, 8 months ago

-

Akshat Joshi 4 years, 8 months ago

देहस्य- शरीरस्य

Yogita Ingle 4 years, 8 months ago

देहस्य - शरीस्य.

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Aarchi Jain 4 years, 8 months ago

चतुर्वर्षणती (24)
  • 4 answers

Kanala Bhavana 4 years, 8 months ago

To forgive

Dhruva Gavali 4 years, 8 months ago

Forgive

Shreya Amin 4 years, 8 months ago

Sorry

Nishid Gahane 4 years, 8 months ago

Sorry
  • 1 answers

Kanala Bhavana 4 years, 8 months ago

अकारान्तः पुँल्लिङ्गः राम शब्दः। रामः रामौ रामाः रामम् रामौ रामान् रामेण रामाभ्याम् रामैः  रामाय रामाभ्याम् रामेभ्यः  रामात् रामाभ्याम् रामेभ्यः रामस्य रामयोः रामाणाम् रामे रामयोः रामेषु हे राम! हे रामौ! हे रामाः! अकारान्तः स्त्रीलिङ्गः लता शब्दः लता लते लताः  लताम् लते लताः  लतया लताभ्याम् लताभिः  लतायै लताभ्याम् लताभ्यः लतायाः लताभ्याम् लताभ्यः  लतायाः लतयोः लतानाम्  लतायाम् लतयोः लतासु हे लते! हे लते! हे लताः! अकारान्तः नपुंसकलिङ्गः पुष्प शब्दः पुष्पम् पुष्पे पुष्पाणि पुष्पम् पुष्पे पुष्पाणि पुष्पेण पुष्पाभ्याम् पुष्पै: पुष्पाय पुष्पाभ्याम् पुष्पेभ्यः पुष्पात् पुष्पाभ्याम् पुष्पेभ्यः पुष्पस्य पुष्पयोः पुष्पानाम् पुष्पे पुष्पयोः पुष्पेषु हे पुष्प! हे पुष्पे! हे पुष्पाणि!
  • 1 answers

Gaurav Seth 4 years, 8 months ago

40 चत्वारिंशत्
41 एकचत्वारिंशत्
42 द्विचत्वारिंशत् , द्वाचत्वारिंशत्
43 त्रिचत्वारिंशत् , त्रयश्चत्वारिंशत्
44 चतुश्चत्वारिंशत्
45 पञ्चचत्वारिंशत्
46 षट्चत्वारिंशत्
47 सप्तचत्वारिंशत्
48 अष्टचत्वारिंशत् , अष्टाचत्वारिंशत्
49 एकोनपञ्चाशत्
50 पञ्चाशत्
51 एकपञ्चाशत्
52 द्विपञ्चाशत्
53 त्रिपञ्चाशत्
54 चतुःपञ्चाशत्
55 पञ्चपञ्चाशत्
56 षट्पञ्चाशत्
57 सप्तपञ्चाशत्
58 अष्टपञ्चाशत्
59 एकोनषष्ठिः
60 षष्ठिः
61 एकषष्ठिः
62 द्विषष्ठिः
63 त्रिषष्ठिः
64 चतुःषष्ठिः
65 पञ्चषष्ठिः
66 षट्षष्ठिः
67 सप्तषष्ठिः
68 अष्टषष्ठिः
69 एकोनसप्ततिः
70 सप्ततिः
71 एकसप्ततिः
72 द्विसप्ततिः
73 त्रिसप्ततिः
74 चतुःसप्ततिः
75 पञ्चसप्ततिः
76 षट्सप्ततिः
77 सप्तसप्ततिः
78 अष्टसप्ततिः
79 एकोनाशीतिः
80 अशीतिः
81 एकाशीतिः
82 द्वशीतिः
83 त्र्यशीतिः
84 चतुरशीतिः
85 पञ्चाशीतिः
86 षडशीतिः
87 सप्ताशीतिः
88 अष्टाशीतिः
89 एकोननवतिः
90 नवतिः
91 एकनवतिः
92 द्विनवतिः
93 त्रिनवतिः
94 चतुर्नवतिः
95 पञ्चनवतिः
96 षण्णवतिः
97 सप्तनवतिः
98 अष्टनवतिः
99 एकोनशतम्
100 शतम्

 

  • 2 answers

Rudra Chetariya 4 years, 8 months ago

6w628q919882

Chetan Das 4 years, 8 months ago

1
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Rahul. Malik. 4 years, 8 months ago

Karam Raja Rani Uttar
Jsj
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Mariyam Qazi 4 years, 8 months ago

Sar Pata syster Khalistan bharo
  • 1 answers

Dadi Mihir 4 years, 8 months ago

वर्णानाम शब्दे किम् विभक्तिः ?
  • 2 answers

Kanala Bhavana 4 years, 8 months ago

अहं गच्छामि।

Manshi Yash Maurya 4 years, 8 months ago

Where
  • 1 answers

Twinkle Khatwase 4 years, 8 months ago

Koi acchi chij Jo Apni Taraf aakarshit Karen like Ek Sundar dress jo aapko bahut acchi lag rahi hai vah aapko aakarshit kar rahi hai
  • 1 answers

Lovepreet Singh 4 years, 8 months ago

खरभरु देखि बिकल पुर नारीं। सब मिलि देहिं महीपन्ह गारीं॥ तेहिं अवसर सुनि सिवधनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥ खलबली देखकर जनकपुरी की स्त्रियाँ व्याकुल हो गईं और सब मिलकर राजाओं को गालियाँ देने लगीं। उसी मौके पर शिव के धनुष का टूटना सुनकर भृगुकुलरूपी कमल के सूर्य परशुराम आए। देखि महीप सकल सकुचाने। बाज झपट जनु लवा लुकाने॥ गौरि सरीर भूति भल भ्राजा। भाल बिसाल त्रिपुंड बिराजा॥ इन्हें देखकर सब राजा सकुचा गए, मानो बाज के झपटने पर बटेर लुक (छिप) गए हों। गोरे शरीर पर विभूति (भस्म) बड़ी फब रही है और विशाल ललाट पर त्रिपुंड विशेष शोभा दे रहा है।सीस जटा ससिबदनु सुहावा। रिस बस कछुक अरुन होइ आवा॥ भृकुटी कुटिल नयन रिस राते। सहजहुँ चितवत मनहुँ रिसाते॥ सिर पर जटा है, सुंदर मुखचंद्र क्रोध के कारण कुछ लाल हो आया है। भौंहें टेढ़ी और आँखें क्रोध से लाल हैं। सहज ही देखते हैं, तो भी ऐसा जान पड़ता है मानो क्रोध कर रहे हैं। बृषभ कंध उर बाहु बिसाला। चारु जनेउ माल मृगछाला॥ कटि मुनिबसन तून दुइ बाँधें। धनु सर कर कुठारु कल काँधें॥ बैल के समान (ऊँचे और पुष्ट) कंधे हैं; छाती और भुजाएँ विशाल हैं। सुंदर यज्ञोपवीत धारण किए, माला पहने और मृगचर्म लिए हैं। कमर में मुनियों का वस्त्र (वल्कल) और दो तरकस बाँधे हैं। हाथ में धनुष-बाण और सुंदर कंधे पर फरसा धारण किए हैं। दो० - सांत बेषु करनी कठिन बरनि न जाइ सरूप। धरि मुनितनु जनु बीर रसु आयउ जहँ सब भूप॥  शांत वेष है, परंतु करनी बहुत कठोर हैं; स्वरूप का वर्णन नहीं किया जा सकता। मानो वीर रस ही मुनि का शरीर धारण करके, जहाँ सब राजा लोग हैं, वहाँ आ गया हो॥  देखत भृगुपति बेषु कराला। उठे सकल भय बिकल भुआला॥ पितु समेत कहि कहि निज नामा। लगे करन सब दंड प्रनामा॥ परशुराम का भयानक वेष देखकर सब राजा भय से व्याकुल हो उठ खड़े हुए और पिता सहित अपना नाम कह-कहकर सब दंडवत प्रणाम करने लगे।
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Amandeep Kaur Aman 4 years, 8 months ago

6t

Tanveer Solanki 4 years, 8 months ago

Anushka
  • 2 answers

Mayank Kumar 4 years, 8 months ago

ya

Tanish Thakur 4 years, 8 months ago

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