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इस जल प्रलय में लेखक ने बाढ की विभीषिका को प्रत्यक्ष रूप से देखा और अनुभव किया है. लेखक उस शेत्र का रहने वाला है जहाँ विभिन्न नदियों के बाढ पीड़ित लोग शरण लेने जाते हैं.
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