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कीचड़ का काव्य काका कालेलकर दुआरा रचित ललित निबंध है. इसमें लेखक ने कीचड का महत्व दर्शाया है. लेखक के अनुसार इसे तुच्छ कहकर उपेक्षीत नहीं किया जा सकता.
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