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Posted by Bhumi Gothwal 1 year, 4 months ago
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Preeti Dabral 1 year, 4 months ago
सर्वत्र ख्याल का प्रचार होने से सदारंग-अदारंग का नाम सर्वविदित है, क्योंकि उन लोगों ने अनेक छोटे-बड़े ख्यालों की रचना की। ख्याल के साथ वे लोग भी अमर हो गये सदारंग-अदारंग उनका उपनाम था, उनका असली नाम क्रमशः नियामत खाँ और फिरोज खाँ था। अदारंग (फिरोज खॉ) सदारंग (नियामत खाँ) के पुत्र थे। गायक तानसेन की पुत्री की दसवीं पीढ़ी सदारंग की थी। उनका पूरा उपनाम सदारंगीले था। उनके गीतों में अधिकतर सदारंगीले मोहमदसा लिखा हुआ पाया जाता है। वे मोहम्मदशाह के दरबार में थे। उनको प्रसन्न करने के लिये अपने गीतों में उनका नाम डाल दिया करते थे। एक बार बादशाह के दिमाग में यह बात जम गई कि सारंगी के साथ नियामत खाँ की बीन भी बजे। उनकी यह इच्छा नियामत खाँ को सूचित कर दी गई। इसे सुनकर वे बड़े दुःखी हुये और उनके वजीर से साफ-साफ कह दिया कि सारंगी की संगति करना मेरी बेइज्जती है। मैं खानदानी बीनकर हूँ, कोई अताई नहीं हूं। बादशाह की बात किसी प्रकार टाली नहीं जा सकती थी। एक ओर नियामत खाँ अपनी हठ पर अड़े रहे और दूसरी ओर बादशाह, जो उसे दरबार में रक्खे हुए थे। वे अपनी आज्ञा की अवहेलना किसी भी प्रकार सहन नहीं कर सकते थे। अतः उसने सदारंग को अपने दरबार से निकाल दिया। कुछ समय तक सदारंग अज्ञात रहे। उनका मन सदा ख्याल के प्रचार में लगा रहता। अन्त में सदारंग ने ख्याल को प्रचार में लाने के लिये एक नई तरकीब खोज निकाली। उन्होंने सोचा कि अगर गाने के शब्दों में बादशाह का नाम भी डाल दिया जाय तो ऐसे गीतों को सभी लोग पसन्द करेंगे और गीत के साथ ख्याल शैली भी प्रचलित हो जायेगी। उसने ऐसा ही किया और उसे बड़ी सफलता मिली। उसने अपने सभी रचित गीतों में सदा रंगीले मोम दशा शब्द डाल दिया। बादशाह भी ऐसे गीतों को बड़ी चाव से सुनता था। उसके मन में बड़ी उत्कण्ठा हुई कि सदा रंगीले कौन हैं ? पता लगाने पर वह नियामत खाँ निकले। बादशाह ने उनके पुराने अपराध को क्षमा कर दिया और पुनः आदरपूर्वक दरबार में रख लिया। दरबार के अन्य ध्रुपद गायक ख्याल को जनाना संगीत कहने लगे और उससे जलने लगे। कहा जाता है कि सदा रंगीले स्वयं तो ध्रुपद गाया करते थे, किन्तु अपने शिष्यों को ख्याल ही सिखाते। उसके गीतों में श्रृंगारिकता और बादशाह की प्रशंसा पाई जाती है। उसके रचित गीत ख्याल होने के कारण पहले निम्न कोटि के समझे जाते थे, किन्तु जैसे-जैसे प्रचलित होते गये उनका महत्व बढ़ता गया।
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