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CBSE - Class 06 - हिंदी - User Submitted Papers

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CBSE User Submitted Papers Class 6 Hindi

CBSE User Submitted Papers Class 6 Hindi

CBSE Hindi model question paper

CBSE User Submitted Papers for class 6 Hindi and User Submitted Papers & Solutions of 6 Hindi are made available by CBSE every year just after the annual exams are over. CBSE marking scheme and blue print is provided along with the User Submitted Papers. This helps students find answer the most frequently asked question, How to prepare for CBSE annual exams. The best way to prepare for annual exams is to understand the questions pattern and practice them as given in User Submitted Papers.

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User Submitted Papers of class 6 Hindi

CBSE class 6 annual Submitted Papers for Hindi for the year 2018, 2017, 2016, 2015 with solutions in PDF format for free download. The User Submitted Papers last 10 year for all – NCERT books and based on CBSE latest syllabus must be downloaded and practiced by students. These old 5 to 10 year annual User Submitted Papers are the best source to understand question paper pattern and chapter wise weightage in class 6th Hindi question paper.

Chapter-wise Marks distribution for class 6 Hindi annual exam

Senior Secondary stage of school education is a stage of transition from general education to discipline-based focus on curriculum. The present updated syllabus keeps in view the rigour and depth of disciplinary approach as well as the comprehension level of learners. Due care has also been taken that the syllabus is comparable to the international standards. Salient features of the syllabus include:

  • Emphasis on basic conceptual understanding of the content.
  • Emphasis on use of SI units, symbols, nomenclature of physical quantities and formulations as per international standards.
  • Providing logical sequencing of units of the subject matter and proper placement of concepts with their linkage for better learning.
  • Reducing the curriculum load by eliminating overlapping of concepts/content within the discipline and other disciplines.
  • Promotion of process-skills, problem-solving abilities and applications of Hindi concepts.

Besides, the syllabus also attempts to

  • strengthen the concepts developed at the secondary stage to provide firm foundation for further learning in the subject.
  • expose the learners to different processes used in Hindi-related industrial and technological applications.
  • develop process-skills and experimental, observational, manipulative, decision making and investigatory skills in the learners.
  • promote problem solving abilities and creative thinking in learners.
  • develop conceptual competence in the learners and make them realize and appreciate the interface of Hindi with other disciplines.

CBSE Class 6 Hindi
CBSE Syllabus
मातृभाषा के रूप में हिंदी
(कक्षा 6)


प्रस्तावना

छठी से आठवीं कक्षा के बच्चे किशोरावस्था में कदम रख रहे होते हैं।

यह दौर मन, मानस और शारीरिक परिवर्तन की दृष्टि से संवेदनशील होता है।

इस नये संधिा काल में स्कूल, कक्षा और शिक्षक की सकारात्मक भूमिका छात्र-छात्रओं की ऊर्जा और जिज्ञासा को सार्थक स्वस्थ दिशा दे सकती है ताकि मननशील और संवेदनशील व्यक्ति के रूप में उनका विकास हो सके। इसके लिए जरूरी है कि वे कक्षा के साथ भावनात्मक और बोद्धिक जुड़ाव महसूस कर सकें।

सौंदर्यबोर्धा, साहित्यबोधा और सामाजिक-राजनैतिक बोधा के विकास की दृष्टि से स्कूली जीवन का यह चरण अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस चरण में ऐसे कई किस्म के बोधाों और दृष्टियों के अंकुर फ़ूटते हैं। चाहे भाषायी सौंदर्य हो या परिवेशगत, कोई चीज सुंदर है तो क्यों है। यदि कोई वस्तु, रचना, फि़ल्म आदि अच्छी है तो वे कौन से बिंदु हैं जो उसे अच्छा बनाते हैं, उनके बारे में स्पष्ट सोचहोना बहुत ज़रूरी है।

प्रारंभिक कक्षाओं में समझकर पढ़ना सीख लेने के बाद अब छात्र-छात्रएं पढ़ते समय किसी रचना से भावनात्मक रूप से जुड़ भी सकें और कोई नई किताब या रचना सामने आने पर उसे उठाकर पलटने और पढ़ने की उत्सुकता उनमें पैदा हो। समाचार पत्र के विभिन्न पन्नों पर क्या छपता है इस बात की जानकारीउन्हें हो। समाचार पत्र में छपी किसी खबर, लेख या कही गई किसी बात का निहितार्थ क्या है?

छात्र-छात्रएं उसमें झलकने वाले सोच, पूर्वाग्रह और सरोकार आदि को पहचान पाएँ।

कुल मिलाकर प्रयास यह होना चाहिए कि इस चरण के पूरा होने तक छात्र-छात्रएँ किसी भाषा, व्यक्ति, वस्तु, स्थान, रचना आदि का विश्लेषण करने, उसकी व्याख्या करने और उस व्याख्या को आत्मविश्वास व स्पष्टता के साथ अभिव्यक्त करने के अभ्यस्त होने लगें।

उद्येश्य

  • निजी अनुभवों के आधाार पर भाषा का सृजनशील इस्तेमाल।
  • दूसरों के अनुभव से जुड़ पाना और उनके परिप्रेक्ष्य से चीजों, स्थितियों तथा घटनाओं को समझने की क्षमता का विकास।
  • भाषा की बारीकी और सौन्दर्यबोधा को सही रूप में समझने की क्षमता का विकास।
  • दृश्य और श्रव्य माधयमों की सामग्रियों द्धबाल साहित्य, पत्र-पत्रिकाएं, दूरदर्शन व कम्प्यूटर जनित कार्यक्रम, नाटक, सिनेमा, परिचर्चा, भाषण आदिऋ को पढ़कर,देखकर और सुनकर समझने तथा उस पर स्वतंत्र व स्वाभाविक मौखिक एवं लिखित प्रतिक्रिया व्यक्त करने की क्षमता का विकास।
  • विभिन्न साहित्यिक विधााओं और ज्ञान से संबंधिात अन्य विषयों की समझ का विकास तथा उससे आनंद उठाने की क्षमता का विकास।
  • पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त अभिनय, गीत, संवाद, परिचर्चा, अन्त्याक्षरी, घटनावर्णन, प्रश्नोत्तरी, भाषण, खेल-कूद व अन्य महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम सहगामी क्रिया-कलापों के आधाार पर भाषा और साहित्य को समझना।
  • पठित, लिखित और सुने हुए भाषिक ज्ञान से संबंधिात सामग्रियों का तार्किक दृष्टि से अधययन करने की प्रवृति का विकास।
  • सरसरी तौर पर किसी पाठ को देखकर उसकी विषयवस्तु का पता करने के कौशल का विकास और उसमें किसी विशेष बिंदु को खोजने के लिए पाठ की बारीकी से जाँच करने की क्षमता का विकास।
  • सुनी, पढ़ी और समझी हुई भाषा को सहज और स्वाभाविक लेखन द्वारा अभिव्यक्त करने की क्षमता का विकास।
  • शब्दों, मुहावरों, लोकोक्तियों और कहावतों का सुचिंतित प्रयोग करने की प्रवृति का विकास
  • मौखिक और लिखित अभिव्यक्ति में संदर्भ और आवश्यकतानुसार समुचित भाषा शैली व प्रयोग को चुनने की समझ का विकास।
  • भाषा की नियमब) प्रकृति को पहचानना और उसका विश्लेषण करना।

पाठ्यसामग्री

छठी से आठवीं कक्षा में मातृभाषा हिंदी के शिक्षण में मदद देने के लिए जो पाठ्यपुस्तक तैयार की जाए उसमें पंद्रह से अठारह पाठ हो सकते हैं। पाठों का चुनाव करते समय इस बात की सावधाानी रखना जरूरी है कि वे आरंभिक शिक्षा व्यवस्था के छा़त्र-छात्रओं के संवेदना लोक के साथी बन सकें। पाठ कुछ पूर्वनिर्धाारित संदेशों को पहुँचाने के मकसद से गढ़े नहीं जाएँ। पाठ हमउम्र विद्यार्थियों के सपनों, उम्मीदों, आशंकाओं और उनकी विस्तृत हो रही दुनिया के संदर्भ में प्रामाणिक प्रतीत होना चाहिए। जरूरी है कि अलग-अलग अनुभवक्षेत्रें से जुड़े लोगों के लिखे पाठ चुने जाएँ। पाठों के चयन में ‘महानता’ शर्त नहीं है। शुचिता से अधिाक संवेदना की सच्चाई पर धयान देना चाहिए।

  • आवश्यकतानुसार पाठगत संदर्भों के आधाार पर भाषा की संरचनाओं की समकालीन शैलियों/रूपों को धयान में रखते हुए शिक्षण संदर्शिका भी तैयार की जा सकती है। विद्यार्थियों की रुचि और रुझान के अनुसार ही पास-पड़ोस सहित सम्पूर्ण परिवेश की भाषिक समृधि) का भाषा, साहित्य व अन्य विषयगत शिक्षण युक्ति में अधिाक से अधिाक उपयोग किया जाना चाहिए। अतः प्रयोग और उपयोग के क्रम में कक्षा-अधयापन में विद्यार्थियों के सहज, स्वाभाविक भाषा कौशलों की समृधि) में आवश्यक पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त अभ्यास एवं परियोजना कार्य में भाषण, परिचर्चा, संवाद, श्रुतलेख, वाचन तथा विभिन्न समस्याओं पर वाद-विवाद जैसे कार्यों को शिक्षण विधिा में शामिल कर विद्यार्थियों को अधिाक से अधि शक वैज्ञानिक दृष्टियुक्त, चिंतनशील और स्वावलंबी बनाया जा सकता है।

पूरकपाठ्यपुस्तके : तीनों कक्षाओं (6,7,8) के लिए स्थायी महत्व की एक-एक पुस्तकें निर्धाारित की जाएगी जिससे बच्चों में पठन रुचि का विकास हो सके।

विद्यार्थियों की पढ़ने में रुचि जगाने एवं भाषा ज्ञान में वृधि) के लिए पाठ्यपुस्तक के अतिरिक्त पठन सामग्री विकसित की जा सकती है। इस सामग्री की सूची पुस्तक के अंत में दी जाएगी। इसका धयान रखना जरूरी है कि किताबें सिफ़ऱ् कहानी, कविता और उपन्यास न हों, बल्कि वे जानकारी और दूसरे क्षेत्रें से भी जुड़ीहुइंर् हों। छात्र-छात्रएँ अपनी रुचि के अनुसार पढ़ने के लिए किताबों का चुनाव कर सकते हैं। स्कूल में वे सारी पुस्तकें उपलब्धा होनी चाहिए। किताबों में हिंदीतर भाषा को भी जगह मिलनी चाहिए। पूरक सामग्री का इस्तेमाल छात्र-छात्रओं में पढ़ने की रुचि विकसित करने के मकसद से किया जाना चाहिए। इसलिए वे वार्षिक परीक्षा के दायरे में नहीं आएंगी। उनके ज़रिए अधययन को इसका पता करने में मदद मिलेगी कि छात्र-छात्राओ की पढ़ने की रुचि, क्षमता के विकास की गति क्या है।

  • समसामयिक मुद्दों और बच्चों के संज्ञानात्मक स्तर से जुड़े मुद्दों पर कक्षा में समूह में परिचर्चा आयोजित की जा सकती है।
  • बच्चों द्वारा पढ़ी गई कहानियों का समूह में नाट्य-रूपांतरण आयोजित किया जा सकता है।
  • पढ़ी हुई रचनाओं के आधाार पर अपनी रचना और फ़ैंटेसी के साथ नई रचना कर सकते हैं।
  • चित्रें व फ़ोटोग्राफ़ों का छात्र-छात्रएँ गहराई से मौखिक या लिखित विश्लेषण करेंगे।
  • बच्चों को मौखिक प्रश्न पूछने के लिए और रचनाओं पर सच्ची प्रतिक्रिया करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • शब्दकोशों से बच्चों को परिचित कराने के लिए उससे जुड़ी हुई गतिविधिायाँ कराई जा सकती हैं।
  • अख़बारों, पत्रिकाओं और विभिन्न विषयों की किताबों का भरपूर इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
  • विज्ञापनों, पोस्टरों, साइनबोर्ड और भाषा के अन्य उपयोगों का विश्लेषण कक्षा शिक्षण में किया जाना चाहिए।
  • पठन-सामग्री के संदर्भ के माधयम से छात्र-छात्रओं का धयान भाषा की बारीकी की ओर दिलाया जा सकता है, जैसे- अनुमति-आदेश, शांति-सन्नाटा, प्रेरक-प्रेरित, बाँह-हाथ-हथेली में अंतर। ऐसे शब्दो और मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य बनाने की बजाय छात्र-छात्रओं को संदर्भ में शब्द या मुहावरेका प्रयोग करने को कहा जाए।
  • कोई भी विषय, कार्यक्षेत्र, भाषायी रूप न जानने योग्य नहीं होता। विभिन्न कार्यक्षेत्रें से जुड़ी प्रयुक्ति द्धविशिष्ट भाषा-प्रयोगऋ से छात्र-छात्रओं को परिचित कराने के अवसर जुटाए जा सकते हैं, जैसे- खेल, लोहारगीरी, बुनकरी, फ़ोटोग्राफ़ी, इससे कुछ छात्र-छात्रओं की सामाजिक व पारिवारिक पृष्ठभूमि को कक्षा में स्वीकृति मिलेगी।
  • कक्षा में छात्र-छात्रओं की विविधा केंद्रिक और अन्य क्षमताओं के साथ संबंधा बनाते हुए गतिविधिायों की भी जरूरत है, उदाहरण के लिए वातावरण में व्याप्त मूल धवनियों का गहराई से विश्लेषण किया जा सकता है या परिवेश में उपस्थित वृक्ष, फ़ूल आदि की गंधा की सूक्ष्म संवेदना विकसित की जा सकती है।

परीक्षा और मूल्यांकन

परीक्षा का प्रयोग शिक्षा में गुणात्मक सुधाार के लिए होना चाहिए। विद्यार्थियों के भाषिक, साहित्यिक और अन्य विषयक ज्ञान ग्रहण करने के स्वाभाविक कौशल को स्वाभाविक और व्यावहारिक रूप में ही कक्षाओं में पाठ्यपुस्तक पढ़ाने-लिखाने के अतिरिक्त अन्य ज्ञान से संबंधिात क्रिया-कलापों के समुचित अवलोकन और आकलन की क्रिया अनवरत जारी रहनी चाहिए। विद्यार्थियों के स्वानुभव आधाारित विकसित समझ को व्यावहारिक ढंग से परीक्षण और आकलन करने की ज्यादा आवश्यकता है, जिसे लगातार कक्षा अध यापन के दरम्यान ही किया जाना चाहिए। प्रश्न निर्माण में भी प्रश्न-पत्र निर्माता को धयान रखना चाहिए कि उसमें पाठों के चयन के लिए जो आवश्यक शर्तें हैं, उसकी क्षति तो नहीं हो रही है। इसके लिएप्रश्न-पत्र निर्माता शिक्षकों के लिए भी निर्देश आवश्यक है, जिसे शिक्षक निर्देशिका में स्पष्टतः उल्लेखित किया जाना चाहिए। आकलन में हो सके तो ग्रेडिंग किया जाना चाहिए। मूल्यांकन की प्रकृति मानवीय, विद्यार्थी-मित्रवत, उत्तरदायीपूर्ण और पारदर्शी होनी चाहिए। लिखित और मौखिक परीक्षा के अंकों का अनुपात 70/30 होनी चाहिए।

सतत् मूल्यांकन और वार्षिक मूल्यांकन का अनुपात 30/70 का होगा।

  • छात्र-छात्रओं के अपने अनुभवों से विकसित समझ को कक्षा में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान समूह में चर्चा और लिखित प्रश्नों के माधयम से आँका जा सकता है।
  • उद्देश्यों में उल्लिखित दृश्य-श्रव्य सामग्री पर छात्र-छात्रओं की भावनात्मक व बौधिक प्रतिक्रियाओं को मौलिकता, गहराई आदि के मापदंडों पर आँका जा सकता है।
  • पूरक सामग्री को सतत् मूल्यांकन में ही शामिल किया जाए। इसके अंतर्गत छात्र-छात्रओं को पुस्तक-समीक्षा करने, विभिन्न पात्रें पर अपनी राय देने और अपनी कल्पना से रचना के अंत का पुनर्लेखन करने के लिए कहा जा सकता है।
  • विभिन्न उद्देश्यों के लिए किए जाने वाले तरह-तरह के लेखन कार्यों द्धजैसे-पोस्टर, विज्ञापन, सूचना-संदेश डायरी लेखन आदिऋ को भी मूल्यांकन में शामिल किया जा सकता है।
  • वार्षिक मूल्यांकन के लिए प्रश्न-पत्र तैयार करते समय इस पाठ्यक्रम के पहले अधयाय में दिए गए भाषा-शिक्षण के उद्देश्यों और पाठ्यपुस्तक में दिए गए प्रश्नों की प्रकृति को धयान में रखा जाए। पाठ की समझ से संबंधिात ऐसे प्रश्न न हों जिनके उत्तर रटने की गुंजाइश हो। प्रश्न ऐसे हों जिनके उत्तर बच्चे अपनी कल्पना से दें या जिनके उत्तर लिखने के लिए छात्र-छात्रएँ पाठ में अनकही, अंतर्निहित बातों को पकड़ने का प्रयास करें।
  • व्याकरण के पक्षों और शब्दों की बारीकी की समझ का मूल्यांकन संदर्भ में किया जाए। पाठ्यपुस्तक के बाहर की किसी रचना में संज्ञा, क्रिया विशेषण, पदबंधा, आदि को ढूँढ़ने और पुनरुक्ति द्धसंज्ञा, विशेषण आदिऋ की अर्थ-छटाओं को पहचानने से संबंधिात प्रश्न दिए जा सकते हैं। मुहावरों के प्रयोग से संबंधिात प्रश्न पूछने के लिए छात्र-छात्रओं को अपनी कल्पना सेचार-पाँच वाक्यों में उपयुक्त संदर्भ रचने को कहा जा सकता है। वाक्यों में शब्दक्रम परिवर्तन का अर्थ पर प्रभाव, क्रिया और कर्त्ता/ कर्म की अन्विति,- इस प्रकार के कई अन्य वाक्य-संरचना से संबंधिात प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

व्याकरण के बिन्दु

कक्षा 6

  • विविधा पाठों द्धपाठ्यपुस्तक के व अन्य के संदर्भ में संज्ञा और विशेषण के भेदों की पहचान व प्रयोगऋ वाक्य में ‘‘ने’’ के प्रयोग का क्रियारूप पर प्रभाव।
  • मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग और उनके लिए उचित संदर्भ का वर्णन।
  • विराम चिह्नों का प्रयोग: पूर्णविराम, अल्पविराम, प्रश्नवाचक चिह्न।

कक्षा 7

  • कर्म के आधाार पर क्रिया के भेदों की पहचान व प्रयोग द्धअकर्मक, सकर्मकऋ।
  • समास का सामान्य परिचय।
  • मुहावरों और लोकोक्तियों का वाक्यों में प्रयोग।

कक्षा 8

  • वाक्य के प्रकारः सरल, संयुक्त, मिश्र।
  • विविधा पाठों के संदर्भ में अर्थ की दृष्टि से पुनरुक्ति की पहचान व प्रयोग।
  • संधिा का सामान्य परिचय ।
  • पाठ्यपुस्तकों में दी गई लिपि के रूप का प्रयोग।

कक्षा 6 से 8 तक शब्द व्यवस्था द्धपर्याय, विलोम आदि से भी बच्चों को परिचित कराना।

द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी (कक्षा 6 से 8 )

छठीं कक्षा में हिंदी पढ़ने वाले विद्यार्थी के पास अपनी मातृभाषा का ज्ञान होता है और उसके प्रयोग से भी वह वाकिफ़ है। पहली भाषा की यही जानकारी उसे दूसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ने में मदद करेगी। ये विद्यार्थीपहली बार छठी कक्षा में हिंदी की संरचनाओं से परिचित होते हैं लेकिन उनका भाषिक विकास बड़ी तेजी स होता है। यही कारण है कि वे दो तीन साल हिंदी पढ़ने के बाद इस स्थिति में पहुँच जाते हैं कि हिंदी को माधयम के रूप में चुन सकें। इस स्तर पर जहाँ एक ओर हिंदी भाषा की शुरुआती संरचनाओं से परिचित कराया जाएगा तो दूसरी ओर विषय सामग्री छठी कक्षा के बच्चों के वय और मानसिक तथा संवेदनात्मक स्तर को धयान में रखकर चुनी जाएगी। छठी से आठवीं कक्षा के विद्यार्थी उम्र के अत्यंत ही संवेदनशील दौर में होते हैं। इस समय उनकी कल्पना आकार ग्रहण कर रही होती है और वे उसके दायरे को आगे सार्वजनिक दायरे में अपनी जिम्मेवारियों को समझने लगते हैं। वे देश, विदेश, समाज के प्रति सभी तरह की संवेदनाओं की भाषिक अभिव्यक्ति करने लगते हैं। इस संबंधा में उनकी अपनी राय भी दृढ़ होने लगती है। इस स्तर पर हिंदीतर मातृभाषा वाले छात्रें को हिंदी के रूप में एक ऐसा साथी मिलना चाहिए जो उनके अपने सांस्कृतिक परिवेश के साथ सहज संबंधा बनाते हुए उनके भीतर अपरिचित के प्रति स्नेहपूर्ण उपस्थिति पैदा कर सके।

उपर्युक्त बातों को धयान में रखकर द्वितीय भाषा के रूप में छठी से आठवीं तक के विद्यार्थियों के लिएनिर्मित पाठ्यक्रम के निम्नलिखित उद्देश्य होंगे –

  • दैनिक जीवन में हिंदी में समझने तथा बोलने की क्षमता का विकास।
  • हिंदी का बाल और शिक्षा साहित्य सहज रूप से पढ़ने और उसका आनंद उठाने की सामर्थ्य का विकास।
  • बोलने की क्षमता के अनुरूप लिखने की क्षमता का विकास।
  • बोलचाल की हिंदी को सुनकर समझने की क्षमता का विकास।
  • हिंदी के व्याकरणिक पक्षों को पाठ के संदर्भ में समझ पाना और अपनी मातृभाषा व हिंदी की संरचना की समानताओं व अंतर की पहचान करने की क्षमता का विकास।
  • विभिन्न क्षेत्रें, स्थितियों में हिंदी की विभिन्न प्रयुक्तियों को समझने की योग्यता का विकास।
  • संचार के विभिन्न माधयमों द्धप्रिंट और इलैक्ट्रानिकऋ में प्रयुक्त हिंदी के विभिन्न भाषा रूपों को समझने की योग्यता का विकास।
  • कक्षा के बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक संदर्भों के प्रति संवेदनशीलता का विकास।

पाठ्य सामग्री

  • ऐसी पाठ्यपुस्तक तैयार की जाए जिसमें चुनी गई मौलिक रचनाओं की भाषा में और बोलचाल की हिंदी में ज्यादा अंतर न हो। इस पुस्तक में वार्तालाप के कुछ सहज नमूने भी दिए जा सकते हैं। इन पुस्तकों में संदर्भ से जोड़कर व्याकरण के उन बिन्दुओं को विशेष रूप से उभारा जाए जिससे बच्चों के लिए हिंदी में बातचीत करने में मदद मिले।
  • रचनाओं के चयन में छात्र -छात्रओं के बौधिक और संवेदनात्मक स्तर को धयान में रखना जरूरी है। चूँकि हिंदी में अनूदित गैर हिंदी पाठों को उदारता से लेने की वकालत मातृभाषा हिंदी की किताबों में भी की गई है, द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी शिक्षण के लिए तैयार की गई किताबों में भी ऐसे पाठों को लिया जाना चाहिए।
  • पढ़ने के लिए विभिन्न विधााओं का भाषा की दृष्टि से सरल साहित्य और बाल-पत्रिकाएँ उपलब्धा कराई जाएँ। नवसाक्षरों के लिए पुनर्लिखित क्लासिक साहित्य और पत्रिकाएँ भी प्रयोग में लाई जा सकती हैं।

शिक्षण युक्तिया

  • प्रथम भाषा-अर्जन की तरह द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी के सहज अर्जन के लिए हिंदी में लिखी चीजों से भरा परिवेश रचना जैसे - चीजों के नाम, छोटी कविताएँ, पोस्टर, जाने-पहचाने विज्ञापन आदि।
  • अक्षरों की बजाय बच्चों के परिचित हिंदी शब्द-भंडार से हिंदी सिखाने की शुरुआत करना।
  • चित्र, फ़ोटोग्राफ़, रेडियो, टेलीविजन आदि की सहायता से हिंदी बोलने-सुनने के अवसर जुटाना।
  • छात्र-छात्रओं की मातृभाषा के गीतों और उनके हिंदी अनुवाद की सहायता से इन भाषाओं की संरचना का विश्लेषण करना।
  • उपर्युक्त गतिविधिा और पाठों के संदर्भ में विविधा संस्कृतियों पर बातचीत के अवसर जुटाना।
  • रेडियो, टेलिविजन पर सुने-देखे कार्यक्रमों पर बातचीत के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करना।
  • लेखन के जरिये अपने विचारों और मनोभावों को अभिव्यक्त करने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करना।
  • रोल प्ले के माधयम से विभिन्न प्रयुक्तियों के प्रयोग के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करना।
  • जहाँ संभव हो छात्र-छात्रओं को हिंदी में छोटी-छोटी फि़ल्में दिखाना और उन पर बातचीत करना।
  • संदर्भपरक भाषा-अर्जन की दृष्टि से श्रुतलेख, क्लोज टेस्ट जिसमें एक पाठांश का हर सातवाँ शब्द हटा दिया जाता है और छात्र को भाषा के सहजबोधा के आधाार पर रिक्त स्थान भरने को कहा जाता है।
  • ऐसे अभ्यास-प्रश्नों का प्रयोग करें जो बच्चों की अभिरुचि का विकास करने में सहायक हो, विषय विस्तार करने वाले हों तथा पठन के प्रति रुचि जागृत करने वाले और लिखने की प्रेरणा देने वाले हों।

मूल्यांकन

  • मूल्यांकन का 30 प्रतिशत भाग आंतरिक हो और यह मुख्य रूप से हिंदी के प्रकार्यपरक पक्ष पर आधाारित हो।
  • बच्चों की सहज मौखिक व लिखित अभिव्यक्ति का मूल्यांकन होगा, रटे हुए उत्तरों का नहीं। रटने की आदत को हतोत्साहित करने की सख्त जरूरत है।
  • व्याकरण की समझ को संदर्भपरक प्रश्नों के माधयम से आँका जाएगा।
  • प्रक्रिया लेखन द्धदेखें कक्षा 3 -5 का पाठ्यक्रमऋ में केवल अंतिम प्रारूप का मूल्यांकन करने की बजाय लिखने की प्रक्रिया में हुई प्रगति का मूल्यांकन किया जाएगा।
  • परिभाषापरक प्रश्न पूछने की बजाय दिए गए पाठांश में व्याकरण के पक्षों की पहचान और अवलोकन के आधाार पर भाषा के नियमों की पहचान का मूल्यांकन किया जाएगा।
  • विविधा संदर्भों में विभिन्न उद्देश्यों के अनुसार उचित भाषा-शैली और कल्पनाशील प्रयोग का मूल्यांकन होगा।
  • छात्र-छात्रओं की मौखिक अभिव्यक्ति का सतत् मूल्यांकन किया जाएगा जिसमें प्रश्न पूछना, प्रतिक्रिया व्यक्त करना, परिचर्चा में भाग लेना शामिल हो।

कुछ प्रमुख व्याकरणिक बिन्दु (कक्षा 6,7 एवं 8 के लिए)

  • पाठ्यपुस्तक के विविधा पाठों के संदर्भ में संज्ञा, विशेषण और वचन की पहचान और व्यावहारिक प्रयोग।
  • तरह-तरह के पाठों के और कक्षा के संदर्भ में सर्वनाम और लिंग की पहचान।
  • विशेषण का संज्ञा और क्रिया के साथ सुसंगत प्रयोग।
  • पाठों के संदर्भ में ही क्रिया-काल और पक्ष की पहचान।
  • वाक्य में ‘ने’ का प्रयोग।
  • वाक्य संरचना।
  • मुहावरे (सरल) - आँख दिखाना, हाथ धाोना आदि।

इस स्तर पर रोचक अभ्यास-प्रश्नों के माधयम से ही बच्चों को व्याकरण सिखाया जाएगा।

Class 6 Hindi Questions Papers and syllabus

CBSE class 6 Hindi have following chapters. Questions are asked from these chapters. CBSE schools are advised to follow NCERT text books. Here is the list of chapters in class 6th Hindi.

सामान्य निर्देश:

  • प्रस्तुत प्रश्न पत्र में चार खंड हैं। सभी खंडों के उत्तर देना अनिवार्य है।
  • प्रश्न के सभी उपभागों के उत्तर क्रमशः दीजिए।
  • प्रस्तुत प्रश्न पत्र में 12 प्रश्न तथा 5 पृष्ठ हैं।

Class 6 Hindi List of Chapters NCERT Book

  • पाठ-01 वह चिड़िया जो
  • पाठ-02 बचपन
  • पाठ-03 नादान दोस्त
  • पाठ-04 चाँद से थोड़ी-सी गप्पें
  • पाठ-05 अक्षरों का महत्व
  • पाठ-06 पार नज़र के
  • पाठ-07 साथी हाथ बढ़ाना
  • पाठ-08 ऐसे-ऐसे
  • पाठ-09 टिकट एलबम
  • पाठ-10 झांसी की रानी
  • पाठ-11 जो देखकर भी नही देखते
  • पाठ-12 संसार पुस्तक है
  • पाठ-13 मैं सबसे छोटी होउ
  • पाठ-14 लोकगीत
  • पाठ-15 नौकर
  • पाठ-16 वन के मार्ग
  • पाठ-17 साँस साँस में बांस

To download User Submitted Paper for class 6 Mathematics, Science, Social Science, English, Hindi; do check myCBSEguide app or website. myCBSEguide provides sample papers with solution, test papers for chapter-wise practice, NCERT solutions, NCERT Exemplar solutions, quick revision notes for ready reference, CBSE guess papers and CBSE important question papers. Sample Paper all are made available through the best app for CBSE students and myCBSEguide website.



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