उर्दू शायरी की रिवायत के विपरीत फिराक गोरखपुरी के साहित्य में लोक जीवन एवं प्रकृति की झलक मिलती है। सामाजिक संवेदना वैयक्तिक अनुभूति बन कर उनकी रचनाओं में व्यक्त हुई है। जीवन का कठोर यथार्थ उनकी रचनाओं में स्थान पाता है। उन्होंने लोक भाषा के प्रतीकों का प्रयोग किया है। लाक्षणिक प्रयोग उनकी भाषा की विशेषता है। फ़िराक की रुबाईयों में घरेलू हिंदी का रूप दिखता है।