अधिकार मध्यकाल में यूरोप में मनुष्य को अपने बारे में सोचने व निर्णय लेने की छूट नही थी। वह चर्च और सामन्तों आदेशानुसार ही काम करने के लिए बाध्य था। आधुनिक काल में मानवतावादी तथा उदारवादी विचारधारा के विकास के साथ अधिकारों की अवधारणा विकसित हुई और मनुष्य के साथ गरिमामय बर्ताव (नैतिकता से पेश आना) की बात कहीं जाने लगी और 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को लागू किया जो अधिकार मानव होने के नाते मिलने चाहिए।