भवानी प्रसाद मिश्र इस कविता में घर मर्म का उदघाटन है | कवि को जेल-प्रवास के दौरान घर से विस्थापन की पीड़ा सालती है | कवि के स्मृति-संसार में उसके परिजन एक-एक कर शामिल होते चले जाते है | घर की अवधारणा की सार्थक और मार्मिक याद कविता की केंद्रीय सवेंदना है |