त्रिलोचन ‘चंपा काले-काले अच्छर नही चीन्हती’ कविता धरती संग्रह में संकलित है | यह पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त करती है | इसमें ‘अक्षरों’ के लिए ‘काले-काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है जो एक और शिक्षा-व्यवस्था के अंतविरोधो को उजागर करता है तो दूसरी और उस दारुण यथार्थ से भी हमारा परिचय करता है जहाँ आर्थिक मजबूरियों के चलते घर टूटते है |