आलो आंधारि लेखिका की आत्मकथा है-यह उन करोरों झुग्गियां की कहानी है जिसमें झांकना भी भद्रता के तकाजे से बहार है. यह साहित्य के उन पहरुओं के लिए चुनौती है जो साहित्य को सांचे में देखने के आदि हैं, जो समाज के कोने-अंतरे में पनपते साहित्य को हाशिये पर रखते हैं और भाषा एवं साहित्य को भी एक ख़ास वर्ग की जागीर मानते हैं.