पहले पद में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्यता व्यक्त की है तथा व्यर्थ के कार्यों में व्यस्त लोगो के प्रति दुःख प्रकट किया है | वे कहती है कि मोर मुकुटधारी गिरिधर कृष्ण ही उसके स्वामी है | कृष्ण-भक्ति में उसने अपने कुल की मर्यादा भी भुला दी है | संतों के पास बैठकर उसने लोकलाज खो दी है |