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पहले पद में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकार है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई है | इसी व्याप्ति को अद्द्वैत सता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है |
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