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पाश्चात्य समाजशास्त्री एक परिचय. विवेकपूर्ण तथा आलोचनात्मक ढंग से सोचने की क्षमता ने मनुष्य को ज्ञान का उत्पादक और उपभोक्ता दोनों बना दिया। उसे 'ज्ञान का पात्र' की उपाधि दी गई।
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