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अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले. जब से दुनिया अस्तित्व में आई है इसमें प्रकृति के सभी जीवो की बराबर की हिस्सेदारी है, परन्तु मनुष्य ने अपनी बुद्धि से दीवारें कड़ी कर दी हैं.
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