भारत की खोज अहमदनगर का किला. अहमदनगर का किला, 13 अप्रैल 1944 यह मेरी नौवीं जेलयात्रा थीं। हमें यहाँ आए बीस महीने से भी अधिक समय हो चुका था। जब हम यहाँ पहुँचे तो अँधियारे आकाश में झिलमिलाते दूज के चाँद ने हमारा स्वागत किया। शुक्ल-पक्ष शुरू हो चुका था। तब से हर बार जब नया चाँद उगता है तो जैसे मुझे याद दिला जाता है कि मेरे कारावास का एक महीना और बीत गया । चाँद मेरे बंदी जीवन का स्थायी सहचर रहा हैं। वहीं मुझे इस बात की याद दिलाता है कि अँधेरे के बाद उजाला होता है।