इस पाठ के माध्यम से ‘जहाँ चाह, वहाँ राह, कहावत को चरितार्थ होते दिखाया गया है। लेखक ने तमिलनाडु राज्य के सर्वाधिक पिछड़े ज़िले में गिने जानेवाले पुडुकोट्टई की महिलाओं के बारे में बताया है। वहाँ उन्होंने साइकिल चलाना सीखने को एक आंदोलन के रूप में अपनाया और समाज के रुढ़िवादी बंधनों तथा पुरुषों द्वारा थोपी गई दिनचर्या सेबाहर निकलकर दिखाया। लेखक ने पहिए को विकास तथा उन्न्तिकारी रूप में भी प्रस्तुत किया है।