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Class 9 Hindi – A Reedh ki haddi Important Questions

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Class 9 Hindi – A Reedh ki haddi Important Questions. myCBSEguide has just released Chapter Wise Question Answers for class 09 Hindi – A. There chapter wise Practice Questions with complete solutions are available for download in myCBSEguide website and mobile app. These test papers with solution are prepared by our team of expert teachers who are teaching grade in CBSE schools for years. There are around 4-5 set of solved Hindi Extra questions from each and every chapter. The students will not miss any concept in these Chapter wise question that are specially designed to tackle Exam. We have taken care of every single concept given in CBSE Class 09 Hindi – A syllabus and questions are framed as per the latest marking scheme and blue print issued by CBSE for class 09.

CBSE Class 9 Hindi Ch – 3 Practice Tests

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Class 9 Hindi – A Chapter wise Question and Answers

रीढ़ की हड्डी

  1. शंकर जैसे लड़के या उमा जैसी लड़की-समाज को कैसे व्यक्तित्व की ज़रूरत है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

  2. रीढ़ की हड्डी कथावस्तु के आधार पर आप किसे एकांकी का मुख्य पात्र मानते हैं और क्यों?

  3. ‘कलसों से नहाता था, लोटों की तरह।’ रीढ़ की हड्डी पाठ के इस कथन द्वारा कौन, क्या कहना चाहता है?

  4. क्या गोपाल प्रसाद लड़के-लड़कियों को समान दृष्टि से देखता है? स्पष्ट करें।

  5. रामस्वरूप और गोपाल प्रसाद बात-बात पर “एक हमारा ज़माना था …” कहकर अपने समय की तुलना वर्तमान समय से करते हैं। इस प्रकार की तुलना करना कहाँ तक तर्कसंगत है?

रीढ़ की हड्डी

Answer

  1. समाज को उमा जैसे व्यक्तित्व की जरूरत है। उमा चरित्रवान है। वह शिक्षित लड़की है। उसके पिता रामस्वरूप, गोपाल प्रसाद से उमा की शिक्षा की बात छिपा जाते हैं परंतु गोपाल प्रसाद के पूछने पर वह अपनी शिक्षा के बारे में दृढ़तापूर्वक बता देती है। इसके विपरीत शंकर स्वयं तो उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहा है, परंतु वह नहीं चाहता है कि उसकी पत्नी भी उच्च शिक्षा प्राप्त हो। अतः समाज को शंकर जैसे व्यक्तित्व की जरूरत नहीं है। शंकर जैसे व्यक्तित्व से हमें न अच्छे समाजोपयोगी स्वस्थ विचारधारा वाले नागरिक मिलेंगे और न ही इनसे समाज और राष्ट्र की उन्नति में योगदान की अपेक्षा की जा सकती है। वास्तव में समाज को उमा जैसे साहसी, स्पष्टवादीनी तथा उच्च चरित्र वाले व्यक्तित्व की आवश्यकता है।
  2. कथावस्तु के आधार पर निःसंदेह उमा ही इस एकांकी का मुख्य पात्र है। वास्तव में इस एकांकी में रामस्वरूप, गोपाल प्रसाद शंकर तथा उनका नौकर तथा महिला पात्रों में प्रेमा तथा उमा हैं। इनमें से रामस्वरूप तथा गोपालदास एकांकी के अधिकांश भाग में उपस्थित रहते हैं, किंतु इनमें से कोई भी चारित्रिक रूप से आकर्षित नहीं कर पाता है। रामस्वरूप परिस्थितियों के अधीन हो समझौता कर लेते हैं तो गोपाल प्रसाद में अनुकरणीय चरित्र या गुणों का अभाव दिखता है। शंकर दोहरे व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है। उसमें समाजोपयोगी तथा समाज का आदर्श व्यक्ति बनने की योग्यता नहीं है। इनमें उमा बी०ए० पास सुशिक्षित लड़की है जो चरित्रवान, साहसी, अपनी बात को दृढ़तापूर्वक कहने वाली है। वह अपनी तथा समाज में नारियों की सम्मानजनक स्थिति के लिए चिंतित दिखती है। एकांकी के कम अंश में उपस्थित रहने पर भी वही मुख्य पात्र है।
  3. रामस्वरूप का नौकर रतन वास्तव में काम कम करता है, बोलता अधिक है। रतन की हँसी का मजाक उड़ाते हुए रामस्वरूप कहते हैं कि उन्होंने अपनी जवानी में बहुत काम किया। जब वह युवा थे तब खूब कसरत करते थे। कसरत के बाद कलसे से पानी शरीर पर यूँ डालते थे, मानो लोटे से नहा रहे हों। इस कथन के द्वारा एक ओर वे जहाँ अपनी युवावस्था का बखान करना चाहते हैं वहीं रतन को अधिक काम करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।
  4. गोपाल प्रसाद की सोच समाज के लिए हितकर नहीं है। वह लड़के तथा लड़कियों को समान दृष्टि से नहीं तरह-तरह के तर्क देकर लड़के-लड़कियों में अंतर बताकर दूसरों को उकसाता है। उसका मानना है कि लड़कों को पढ़ना-लिखना चाहिए, काबिल बनना चाहिए जबकि लड़कियों को पढ़ना-लिखना आवश्यक नहीं है क्योंकि उन्हें घर ही तो चलाना है। अपनी बात के प्रमाण में वह कहता है कि मोर के पंख होते हैं, मोरनी के नहीं, शेर के बाल होते हैं, शेरनी के नहीं।
  5. यह मनुष्य का स्वाभाविक गुण है कि वह बीते हुए समय को ज्यादा अच्छा बताता है। गोपाल प्रसाद और रामस्वरूप भी ‘हमारा जमाना था…’ कहकर अपने समय को अधिक अच्छा बताने की कोशिश करते हैं। वास्तव में उनकी इस तुलना को तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता है। हो सकती है कि कुछ बातें उस समय में अच्छी रही हों पर सारी बातें अच्छी रही हों यह भी संभव नहीं। जो बातें अच्छी थीं वे भी तत्कालीन समाज की परिस्थितियों में खरी उतरती होंगी पर बदलते समय के अनुसार वे सही ही हो यह आवश्यक नहीं। हर समाज की आवश्यकताएँ समयानुसार बदलती रहती हैं। जैसे पहले स्त्रियों को पढ़ाना भले आवश्यक न समझा जाता रहा हो पर आज स्त्रियों की शिक्षा समाज की आवश्यकता बन चुकी है। इसी तरह आज की बातें आज के परिप्रेक्ष्य में अच्छी है और तत्कालीन समाज के लिए वे बातें अच्छी रहीं होंगी। इस प्रकार उनके द्वारा की गई तुलना तर्कसंगत नहीं है।
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